Shayari or kavita

 



(1) अब बहनें कैसे संभलेगी ये दरिंदो की मार से,

इंसानियत भी डोल उठी है ऐसे कु कृत्य कार्य से ।।

शर्मशार है मातृभूमि ए मानव तेरी हार से,

आकाश भी रो रहा है बहन तेरी चीख पुकार से ।।

अब बहनें कैसे संभलेगी ये दरिंदो की मार से - 1

लाज शर्म सब छोड़ दी आपने अब नंगा नाच दिखाते हैं,

और मारकर खोख़े में बेटी को हम इंसानियत सिखाते हैं।

हैवान वो बनकर बैठे है जो जीत कभी प्यार से थे,

अब बेटी सड़कों पर कैसे चलेगी और चलेगी।

अब बहनें कैसे संभलेगी ये दरिंदो की मार से - 2

बेटी बनना ही गुनाह है जो न बच पाती इस तिरस्कार से,

इसलिए बेटी कहती हैं कि हमें मुक्त करो संसार से।

उन की मौत बेहतर होगी किसी कींडे की शिकार से,

बोलो क्यों जिया हम और किसके अधिकार से ।।

अब बहनें कैसे संभलेगी ये दरिंदो की मार से - 3


अब लाख क़यामत ठालो वीपर, यारो हम रुक ना ।।

बेटी को इंसाफ दिलाने आया है, इंसाफ दिला कर जाएगा ।।


                                        लेखक - विनय कुमार झा 



(२) बाह री दुनिया तुम्हारा रिवाज,

बाप मेरे तो करे पुत्र काज।

मुझे सिखाया 

कैसे जलाऊ थेटो आज ।।

बाह री दुनिया ते रिवाज,

जिसने बनाया था वह मेरी दुनिया थी।

अब वो राज कैसे होंगे,

जब बाप ही छोड़ कर कर रहे थे तो कैसे संभालू सारे काज ।।

बाह री दुनिया ते रिवाज,

लूट कर मुझसे कहती हैं कि सीखना सीख रहे हैं।

आंसू देकर कहती पोछना सीखो,

अब क्या करू तुझसे गिला ऐतराज ।।

बाह री दुनिया ते रिवाज,

                                        विनय कुमार झा


(3) मुद्दोंदते गुज़र गए लेकिन कभी गणना नहीं की गई,

ना जाने किसके दिल में में कितना बाकी रह गया।

जब लुंगा में वो दौर आएगा,

अब देखना यह है कि क्या दिल में कितना प्यार रह गया है ||


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