बिहार: और देश की मौजूदा की स्तिथि | Bihar | Vinay Kumar Jha |


 

बिहार राज्य ✓

बिहार, जिसका अर्थ होता हैं मंदिर या मठ। ऐसा कहते हैं कि बौद्ध धर्म के लोगो द्वारा यहाँ विहार करने के कारण इस राज्य का नाम बिहार पड़ा। बिहार, भारत का एक मात्र ऐसा राज्य है जहां उत्तर प्रदेश के बाद सर्वाधिक आईएएस और आईपीएस अधिकारी निकले हैं। इस उपलब्धि के साथ साथ बिहार राज्य के माथे पर एक कलंक भी गड़ा हुआ हैं, जिसे हम भारतीय ‘बिहारी’ कहते हैं।

दरअसल बिहारी शब्द बिहार के मूलनिवासियों के लिए प्रयुक्त में लाया जाने वाला शब्द है,  जिसे अक्सर एक गाली के रूप में प्रयोग किया जाता हैं। इसके पीछे कई कारण हैं, इन कई कारणों में से सबसे प्रसिद्ध कारण हैं बिहार राज्य की बेरोजगारी! आज़ादी के बाद हो पहले बिहार राज्य में मजदूरों का पलायन करना एक परंपरा सी बन गई हैं।

भारत के किसी भी राज्य में चले जाइए, आपको बिहारी मज़दूर वहां के चार मजदूरों में से एक मज़दूर बिहार का जरूर मिलेगा। इसके पीछे का कारण हैं बिहार की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और कुछ हद तक भूगौलिक स्तिथि भी जिम्मेदार हैं। बिहार के पिछड़े होने के कई कारण आपको इंटरनेट पर आसानी से मिल जायेंगे।

यहां कुछ आंकड़े दिए गए हैं, जो बिहार की जनसंख्या के कार्य को दर्शाते हैं। आप देख सकते बिहार में सर्वाधिक जनसंख्या गृहणी और छात्रों की है। बिहार के लिंगानुपात के अनुसार बिहार में महिलाओं की संख्या लगभग 6 करोड़ हैं। जिसमें कुछ महिलाएं नौकरीपेशा एवम् छात्राएं है। इस प्रकार गृहणियों की संख्या लगभग 3 तीन करोड़ होनी चाहिए। बाकी बचे 5 करोड़ 82 लाख, जिनमें सिर्फ़ छात्र हैं।

आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि बिहार में प्रतिवर्ष कितनी वैकेंसी निकाली जाती हैं, कितने छात्रों का चयन होता हैं। प्रतिवर्ष कितने छात्र बेरोजगार होते हैं? फिलहाल के आंकड़ों में मजदूरों की संख्या 2 करोड़ दर्शायी हैं। जबकि मजदूरों और बेरोजगारों को मिलाकर यह संख्या बिहार की कुल आबादी की आधी होगी।

क्या आप जानते हैं, इस तरह के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए जाते हैं। क्यों? क्योंकि राजनीति का खेल इन्हीं मजदूरों और बेरोजगारों की उम्मीदों पर खेला जाता हैं। यही मज़दूर वर्ग जो अधिकांशतः अशिक्षित होता हैं,  राजनेताओं की दिशा तय करता हैं। सारे के सारे दांव इन्हीं लोगों पर लगाए जाते हैं।

आप किसी भी राजनीतिक दल का मेनिफेस्टो देख लीजिए, कोई बिजली फ्री दे रहा है, कोई गेहूं फ्री दे रहा हैं, कोई बस में मुफ़्त सफ़र दे रहा हैं, कोई महिलाओं को कोई किसानों को हर महीने भत्ता दे रहा हैं। ये सारी योजनाएं मजदूरों के लिए होती हैं।

क्या आपने कभी सोचा है, अमीर और कुलीन वर्ग के लिए सरकार कभी कोई योजना लेकर नहीं आती फिर भी वो खुश होकर पार्टी का समर्थन करते हैं। ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए होता हैं कि सरकार सत्ता में आने के बाद अपना पूरा फ़ायदा अमीरों को पहुंचाती है, ताकि पार्टी के खर्चों को वहन करने के लिए अमीरों से चंदे के तौर पर मोटी रकम वसूल की जा सकें।

अभी हाल ही में एक वीडियो वायरल हो रहा हैं, जिसमें नरेंद्र पुत्र 100 करोड़ की डील करते हुए देखे जा सकते हैं। इसके अलावा 18 करोड़ और 21 करोड़ की बात भी कही गई हैं। सारा का सारा गणित यहीं आकर ख़त्म होता हैं। फिर जिसकी सरकार आती हैं वो अपना ठीकरा विपक्ष के माथे फोड़ देते हैं।

सरकार कोई भी बनाओ, किसी भी पार्टी की हो, हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मगर उनके दिए गए विवरण पत्र में मुफ़्त की रोटी की उम्मीद मत रखो। मुफ़्त बिजली, मुफ़्त गेहूं, मुफ़्त बस यात्रा, मुफ़्त भत्ता इत्यादि। ये सब चीजें हमें कमज़ोर और गुलाम बनाती हैं। साथ में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती हैं। हाल ही में हुए दिल्ली का शराब घोटाला सबके सामने हैं।

आप खुद को सशक्त बनाने पर ज़ोर दो, सरकार से मुफ़्त चीज़े लेने के बजाए रोज़गार की मांग रखो। क्योंकि मुफ़्त की चीज़े तब तक मिलेगी जब तक सरकार सत्ता में रहेगी, सरकार के जाने के बाद मुफ़्त मिलना बंद हो जायेगा और हमें मुफ़्त के खाने की आदत बन जायेगी, जो हमें और अधिक गरीबी की ओर ले जायेगी। इसलिए सरकार से रोज़गार मांगो ताकि हम  अपने खर्च स्वयं वहन कर सकें। और आत्मनिर्भर बन सकें। जैसा कि हमारी वर्तमान सरकार चाहती हैं।

धन्यवाद 😊

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