अरे अब रह ही क्या गया है साहब छिपाने को

Sad shayari collection

 अरे अब रह ही क्या गया है साहब छिपाने को

हाथों के छाले बयां करते हैं मेरे फसाने को

मुझसे रुठी मेरी तकदीर नहीं रूठा तो ख़ुदा हैं

मगर अब रह ही क्या गया है उसे मनाने को ।।

कुछ इस कदर आबाद हुआ में कि

जिन्दगी के सारे गम पा लिए 

अब क्या रह ही गया है पाने को।।

सारी खुशियां अपनों पर ही लुटाई

अब रह ही क्या गया है लुटाने को ।।


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