बीत गए है वर्षो हम को जब से आज़ादी आई हैं ।
मानव का कतल हुआ मानव ने ये रस्म निभाई हैं ।।
चौराहे पर लटका दिया हाथ पैर को काट दिया ,
इंसानियत का तमाशा बना बात धर्म पर आई हैं ।
बिक गया जमीर उसका जाने किसने बोली लगाई हैं ।।
तड़फते दम तोड़ा उसने ऐ मानव अधिकार तेरी दुहाई है ।।
कहां गए वो रक्षक हमारे ये किसने आग लगाई हैं ।
डोली उठनी थी उस बेटी की तुमने इज्जत गिराई हैं ।
रातों रात दफा किया ऐसा तुमने काम किया ।
झूठ मूठ का केस लिखा है ये लालच तुम में आई हैं ।
जवान बेटी थी उसकी ये किसने अर्थी उठाई है ।
अब वो बेटी चीख रही है ऐ मानव अधिकार तेरी दुहाई है ।।
कितने चक्कर काटूं तेरे मैने दिन रात की मेहनत लगाई हैं
हक़ अपना वो मांग नहीं सकता रिश्वत तुमने जो खाई है ।
बूंद बूंद पानी को तरसा खाद को तुमने तरसाया है
फसल हुईं बरवाद तो देखो उसने फांसी लगाई हैं ।।
दाने दाने को मोहताज हुआ घर ये मानव अधिकार तेरी दुहाई है ।
जुर्म किया है उसने देखो ये खाकी मेरे घर आई हैं
तडफ़ा तड़फा कर मारा जाने कैसी शामत आई हैं ।
अपनी ज़िंदगी तुमने ऐस और आराम करली ,
पढ़ लिख उसने अपनी ज़िंदगी हराम कर ली ।
तुमने जो सुपारी उसके नाम की खाई है ।
मरते मरते बचा वो लड़का आज सराफत पर बन आई हैं
बेरोजगार हुआ वो लड़का ऐ मानव अधिकार तेरी दुहाई है ।
— विनय कुमार झा
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