फ़ोटो : ट्विटर अकाउंट @duteechand |
दूती चंद के लिए में काफी दिनों से जानता हूं मैंने उनके बारे काफी पढ़ा और सुना भी हैं उनके बारे में टीवी पर भी देखा हैं । मगर मैंने कभी उनके जीवन की कठिनाइयों को महसूस नहीं किया । उन्हें मैं एक अच्छी धाविका के तौर पर मानता हूं । वह गरीब परिवार में जन्म लेकर करोड़ो भारतीय की प्रेरणा बनती हैं , क्योंकि देश के यदि किसी एशियन गेम में गोल्ड मैडल दिलाया तो 32 साल बाद( इससे पहले पीटी ऊषा ) दुती चंद ने दिलाया है ।100 मीटर की दौड़ में इन्होंने कई रिकॉर्ड बनाए और उन्हें खुद ही तोड़ा ।
लेकिन उन्होंने अपना सफर यह कैसे तय किया , और ना जाने कितनी मुश्किलों का सामना किया यह मैंने तब जाना जब मैंने रश्मि रॉकेट मूवी देखी
एक मूवी में किसी असल ज़िंदगी के किरदार को ढालना बहुत ही कठिन होता हैं , लेकिन मैंने मूवी से उनकी असल ज़िंदगी के बारे में बहुत कुछ जाना । क्योंकि वह मूवी दुती चंद को समर्पित है
आज मैं आपको एक धाविका के बारे बताने जा रहा हूं जिसे समाज ने कभी लड़की समझा नहीं ही
कुछ शारीरिक बनावट और हार्मोन की वजह से वह साधारण लड़कियों से कुछ अलग हैं। मगर वो एक लड़की हैं । जिसने अपने दम पर भारत के लिए कई गोल्ड कास्य और रजत मैडल दिलाए । उनके नाम से साफ साफ जाहिर होता है की वो वास्तव में एक चांद हैं जो चांद की भांति चमक रही हैं । और हमारे देश का नाम रोशन कर रही हैं । आइए जानते है बारे में
ओलंपिक डॉट कॉम और ओलंपिक चैनल के माध्यम से हम इनके जीवन परिचय और उपलब्धियों को बता रहे हैं
दुती चंद का जन्म 3 फरवरी 1996 को भुवनेश्वर (उड़ीसा) से 150 किलोमीटर दूर जाजपुर जिला के एक छोटे से गांव गोपालपुर में हुआ था
इनके पिता का नाम चक्राधर चंद और माता का नाम अकुजी चंद हैं । दुती चंद बहुत ही साधारण गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं । दुती चंद की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई । इसके बाद उन्होंने भुवनेश्वर ने अपनी स्नातक की पढ़ाई पुरी की । इनके परिवार नौ सदस्य हैं जिसमे सात भाई बहिन है । ये अपने माता पिता की तीसरी संतान है । परिवार बहुत बड़ा है और ऊपर ये गरीब भी है । इसलिए इन्हें शुरुवाती दिनों में घर का गुजारा करने में बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा । मगर इन्होंने हिम्मत नहीं हारी , घर का काम भी करती थीं और स्कूल पढ़ने के लिए भी जाती थीं । मगर अब बात यह आती हैं कि उन्हें दौड़ने की प्रेरणा कहां से मिली । जिसके बल पर इन्होंने भारत का नाम पूरे विश्व में रोशन किया । इनकी एक बड़ी बहिन है जिनका नाम सरस्वती हैं उनके द्वारा इन्हे दौड़ने की प्रेरणा मिली । दुती चंद ने अपनी बहिन के साथ एक सरकारी खेल स्कूल में दाखिला लिया , और वहीं से अपने जीवन काल की उपलब्धियों को पाना शुरू किया । दुती चंद को दौड़ने का इतना अधिक शौक था कि उन्होंने दौड़ में ही अपना करियर बनाने की ठान ली । जब हम किसी मंजिल को पाने की ख्वाइश रखते हैं तो उसके लिए हमें अपना जीवन दाव पर लगाना पड़ता हैं और यदि हम ऐसा करते है तो लोग कहते कि सारी कायनात हमें हमारी मंजिल से मिलाने में लग जाती थीं । और यह सौ फ़ीसदी सही है । कुछ ऐसा ही दुती चंद के साथ हुआ । हर किसी की ज़िंदगी में सिर्फ एक बार की मेहनत से मंजिल हासिल हो जाती हैं । मगर दुती चंद दुनियां एक एक मात्र ऐसी महिला धावक है जिन्हें अपने जीवन में दो बार संघर्ष करना पड़ा । पहले संघर्ष के लिए अधिकांश लोग पार कर लेते हैं । और अपनी मंजिल पर रुक जाते हैं । मगर दुती चंद के साथ कुछ ऐसा हुआ जिससे उनकी वर्षो की मेहनत पर पानी फिर गया । AFI ने दुती चंद के लिए दौड़ में भाग लेने से मना कर दिया और उन पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया । उसका करना था उनके शरीर में टेस्टोस्टेरॉन हारमोन की मात्रा का अधिक होना । टेस्टोस्टेरॉन हारमोन के बारे में बता दूं कि यह एक ऐसी स्तिथि पैदा करता हैं जिससे आप आम लड़कियो से कुछ अलग होती हैं । और जब इनका मेडिकल परीक्षण हुआ तब यह स्तिथि सामने आई । और इन्हें कॉमनवेल्थ गेम से बाहर कर दिया । अब यहाँ पर सोचने वाली बात यह है कि एक लड़की के लिए यह साबित करना करना पड़े की वह लड़का नहीं बल्कि एक लड़की हैं । क्या गुजर रही होगी उस वक्त उन पर , समाज के नाम आप भली भांति परिचित होंगे । समाज के लिए सिर्फ एक मुद्दा चाहिए वो किसी भी बड़ी से बड़ी हस्ती को पल भर खाक कर देती हैं । और खासकर यह बात एक लड़की की हो । वैसे लड़कियों में एक तरफ इतनी शक्ति नहीं होती हैं कि वो समाज से लड़ सकें । यदि उन्हें कोई समझने वाला मिल जाए तब शायद यह मुश्किल कुछ हद तक कम पड़ जाएं । समाज के ताने किसी का भी जीना हराम कर सकते हैं । हमें समाज में रहना हैं समाज में ही जीना हैं मगर कभी हमें खुद को समाज के अनुसार नहीं ढालना हैं । उनका जीवन इतना कठिनाइयों से भर गया था कि एक साधारण लड़की खुद को समाप्त तक कर सकती थीं । आज भी हमारे समाज में स्त्रियों की स्तिथि दयनीय है । कभी समाज ने स्त्रियों के लिए बराबर का हकदार नही माना। स्त्रियों को हमेशा से पुरुषों से छोटा ही समझा जाता हैं
एक साधारण स्त्री वैसे भी अपनी इज्जत बचाकर संपूर्ण जीवन यापन करती हैं , यदि इस बीच कोई उसकी इज्जत से खिलवाड़ करता हैं तब उसे जीना और भी मुश्किल हो जाता हैं
दुती चंद हार मानने वालों में से नहीं थीं , उन्होंने अपनी लड़ाई और देश दुनिया में यह साबित किया कि वो भी एक लड़की हैं । वापस से दुती ने अपने करियर की शुरूवात की और फिर से अपनी दौड़ के बल पर पदक जीतने में कामयाब रही
दुती चंद यह साबित कर दिया की एक स्त्री यह यदि समाज के डर घर में छिप जाती हैं तो वह अपने जुर्म की खुद ही गुनहगार होती हैं । उन्होंने जीत कर दिखाया आखिर एक लड़की क्या कर सकती हैं । जरूरत है तो सिर्फ आज की लड़कियों और स्त्रियों को अपनी लड़ाई खुद लड़ने की । समाज क्या कहता हैं , क्या करता हैं इससे आपको कुछ नहीं लेना हैं । आपको सिर्फ अपने सपनों पर जोर लगाना हैं ।
दुती चंद के लिए उनके घर वालों ने उनके घर से निकाल दिया इतना सब कुछ करने के बाद भी , दुती वो लड़की है जिसने देश दुनियां में अपना और अपने देश का नाम रोशन किया । फिर क्यों ऐसा किया उनके साथ उनके घर वालों ने .....
अगले लेख में हम जानेंगे हम..?
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❣️❣️
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