पत्थर नहीं हूं मगर सह सकता हूं ।



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पत्थर नहीं हूं मगर सह सकता हूं 
दरिया नहीं हूं मगर बह सकता हूं
जिस्म जल गया है तेरी जुदाई में
जिंदा नहीं हूं मगर रह सकता हूं।।
बस एक बार तू लौट कर आजा ,
भुल गया हूं हंसना में हस सकता हूं ।
दिल की बातें अधूरी है अब तक
तू आजा में फिर कह सकता हूं ।।
तेरा हर गम सहने को तैयार हूं ,
तू आजा में तेरा संसार हूं ।।
कैसे कह दूं मै तेरे बिन 
जी नहीं सकता 
जी सकता हूं मगर 
तेरे बिन मर नहीं सकता ।।
तू कहदे अगर फिर से जी सकता हूं ।।
जिंदा नहीं हूं मगर रह सकता हूं।।

कविता – विनय कुमार झा

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