महात्मा ज्योतिबा फुले
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महात्मा फुले व सावित्रीबाई फुले की मूर्ति महाराष्ट्र |
बचपन से यदि हम साथ में पड़ते आ रहे हो तो उस वक्त हम दोस्ती करने के लिए किसी विशेष उच्च जाति या निम्न वर्ग के लड़के को नहीं चुनते हैं , बल्कि उसकी प्रतिभा से प्रभावित होकर हम खुद ही उसके मित्र बन जाते है ।
चाहे फिर वह किसी भी वर्ग समुदाय या जाति का को ।
एक बार की बार है जब वो अपने बचपन के ब्राह्मण मित्र की शादी में पहुंचे और बारात में शामिल भी हुए तब उनके मित्र के माता पिता ने उन्हें शूद्र कह कर अपमानित किया । और उन्हें सभी के सामने उन्हें बेइज्जत किया और कहा तुम्हें इतनी समझ तो होनी ही चाहिए थी की ये ब्राम्हण की शादी है तुम इसमें कैसे शामिल हो गए । जाति और वर्ण व्यवस्था की मार सहने वाले ये थे महात्मा ज्योतिराव फुले । उन्हें जाति व्यस्था के इस घोर अपमान का गहरा आघात लगा । जिस व्यक्ति ने जीवन भर फूलों की सेवा की हो जरा सोचिए वह कितने कोमल हृदय का होगा । जिस पर जातिवादी का इतना बड़ा आघात किया गया हों । वह इन घटनाओं से समाज के रवैया से भली भांति परिचित हो गए थे । उन्होंने महसूस किया जब मेरा ये हाल है तो बाकी अन्य मेरी जाति के लोगों का और उससे भी निचली जातियों के व्यक्तियों का हाल रहा होगा और क्या हस्र हो रहा है उनके साथ । तब उन्होंने सामाजिक न्याय से संबंधित जानकारी इक्कठा करना शुरू कर दिया । और कई सारी पुस्तके भी पढ़ ली । जिससे शोषित और वंचित वर्ग को न्याय दिलाने में मदद मिले ।
महात्मा जी को पढ़ाई लिखाई का अच्छा ज्ञान था और वो अपनी शिक्षा कि सहायता से अन्य लोगों को भी शिक्षित करना चाहते थे । उनकी सोच थी यदि किसी समाज को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करना है तो सर्व प्रथम उस समाज की महिलाओं को शिक्षित करना होगा । क्योंकि उस वक्त पुरुषों में अंधविश्वास कम बल्कि महिलाओं में अंधविश्वास पर्याप्त रहता था । वह इस बात से भली भांति परिचित थे । महिलाओं को शिक्षित करने का उनका एक और महत्वपूर्ण कारण था वह थी उनकी दुर्दशा । जो उनसे कभी नहीं देखी जाती थीं ।
हमारी समाज ने महिलाओं को आज भी समान अधिकार नहीं दिए है इतना शिक्षित होने के बाद ।
उन्होंने अपने प्रण को पूरा करने के लिए सर्व प्रथम अपनी पत्नी को शिक्षित किया जिन्हें शिक्षा से संबंधित कोई जानकारी नहीं थी । फिर दोनों ने मिलकर समाज को शिक्षित करने का जिम्मा उठाया ।
फुले व उनकी पत्नी ने खुद स्कूलों का संचालन किया और बच्चो के माता पिता से बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल भेजने का आग्रह किया । इस बात सर खफा होकर उच्च वर्ग के व्यक्तियों ने इसका विरोध किया । ये विरोध प्रदर्शन करने वाले और कोई नहीं बल्कि पाखंडी और अंधविश्वासी लोग थे जिन्हें शिक्षा से कोई रुचि नहीं थी । यदि समाज में ऐसे लोगों की बहुलता होती तो महात्मा फुले के लिए शिक्षा का प्रचार करना असंभव कार्य प्रतीत होता । मगर उसी समाज में कुछ शिक्षित भारतीय और यूरोपीय लोग थे जिन्होंने फुले के लिए प्रोत्साहित किया । इसी के साथ महात्मा फुले और उनकी पत्नी ने मिलकर बच्चों को शिक्षित करने का कार्य प्रारंभ किया ।
आपकी जानकारी के लिए बता दें , महात्मा फुले जी ने अपने में कई दुखों का सामना किया वो एक ऐसे समाज सेवक थे जिन्हें आज महान आत्माओं के साथ जोड़ा जाता और उनका नाम आदर के साथ लिया जाता हैं ।
इतिहास गवाह है जिन्होंने अपनी संघर्ष भरी जिंदगी को मधु के रस पान की तरह आनंदित होकर पिया है या जिंदगी को जिया है और कभी अपने दुखों की किसी से शिकायत नहीं की । आगे चलकर उनसे इतिहास रचा है
महात्मा फुले जीवन भर संघर्षरत रहे । उन्होंने कभी अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं की । उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें महात्मा की उपाधि से सम्मानित किया गया ।
इतने कम शब्दों में महात्मा फुले के जीवन को परिभाषित कर देना संभव नहीं है , ये तो उनके जीवन का एक वाक्या था जिसने उनको अपनी समाज की भलाई कि ओर आकर्षित किया । और मानव वो हैवानियत के चंगुल से निकाल कर मानव बनाने की कोशिश की ।
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