कहो प्रिय मेरी सीते बन सकते हो क्या : कविता

 

कहो प्रिय मेरी सीते बन सकते हो क्या 



अपने सतीत्व के लिए अग्नि परीक्षा दे सकते हो क्या

घर में नहीं मेरे साथ वन में रह सकते हो क्या ।

रानी नहीं इस दास की दासी बन सकते हो क्या ,

मेरी गैर मौजूदगी में भी मेरे बनकर रह सकते हो क्या ,


कहो प्रिय मेरी सीते बन सकते हो क्या ।


स्वाभिमानी हूं मेरे स्वभामिमान की रक्षा कर सकते हो क्या 

जीवन पर्यन्त साथ निभाउंगा तुम निभा सकते हो क्या 

सुख का पता नहीं पर हमारी पीड़ा सहन सकते हो क्या 

तुम हमारे बच्चों को स्वावलंबी बना सकते हो क्या


कहो प्रिय मेरी सीते बन सकते हो क्या ।


मैं राम तो नही तुम मुझे सच्चा इंसान बना सकते हो क्या

मैं भटका हुआ मुसाफ़िर हूं मेरी मंज़िल बन सकते हो क्या

मैं जीना भूल गया हूं तुम मुझे जीना सिखा सकतें हो क्या ।

मैं तुम्हारे आत्म सम्मान की रक्षा करुंगा तुम मेरा गुरुर सलामत रख सकते हो क्या


कहो प्रिय मेरी सीते बन सकते हो क्या ।




भावार्थ – 


अग्नि परीक्षा का अर्थ खुद को अग्नि के समक्ष करना नहीं है , बल्कि अपने प्रेमी के लिए निस्वार्थ भाव से प्रेम करने के लिए कहा गया है। आगे कवि कहता था कि मेरे पास घर तो है मगर महलों जैसी शान ओ शौकत नहीं है । और मैं कोई राजा या राजकुमार नहीं हूं  , मैं एक मजदूर हूं आप मेरे साथ मजदूर की जीवन साथी बनकर रह सकती हैं । अगली पंक्ति में कहा हैं कि जब मैं परदेश काम करने जाऊ क्या तब भी तुम सिर्फ मेरे बनकर रह सकते हो ? 


आगे कवि लिखता हैं कि मैं बहुत स्वाभिमानी हूं मगर इतना भी नहीं की मुझे अपनो का ख्याल ना आए , क्या आप मेरे स्वाभिमान की रक्षा कर सकते हैं , कवि यहां अपने प्रेमी से वादा करता है कि मे आपका साथ उम्र भर निभाउंगा आप भी मेरा साथ उम्र भर दोगे क्या । आगे कहता हैं की सुख का तो पता नहीं है मिलेगा की नहीं क्या मेरे साथ तुम दुख में भी खड़े रह सकते हो क्या , अब यहां पर कवि ने बहुत ही कमाल की बात कही गई कि जब मै परदेश में रहूंगा तुम मेरी अनुपस्थिति से मेरे बच्चों को आत्मनिर्भर बना सकतें हो क्या ? 


तीसरी कड़ी में कवि लिखता हैं कि मैं भगवान राम कि तरह नहीं हूं मगर क्या तुम मुझे एक सच्चा इंसान बना सकतें हो क्या क्योंकि कवि कहता है कि मैं जीवन की भागदौड़ में कहीं खो गया हूं । अपने अस्तित्व को भूल गया हूं ।इसलिए वो अपने प्रेमी से सच्चा इंसान बनाने के लिए कहता हैं । और कहता है कि मेरा मन भटक रहा हैं क्या तुम मुझे सही दिशा प्रदान कर सकते हो क्या । जब ज़िंदगी में दर्द अधिक मिल जाए तो कोई भी व्यक्ति जीना भूल जाता हैं उसे आत्मसात करने की सूझने लगती हैं , इसलिए कवि ने कहा कि मुझे जीना सीखा सकतें हो क्या ? 

आखिरी में कवि ने कहा हैं मैं किसी भी हद को पार कर जाऊंगा मगर में तुम्हारे आत्मसम्मान की रक्षा करूंगा । मगर इसके लिए कवि ने एक शर्त रखी है की तुम्हें मेरा गुरुर सलामत रखना होगा ।


निष्कर्ष – 


हम आखिरी में यह समझते हैं की कवि अपने प्रेमी से बेइंतहा प्रेम करना चाहता है , मगर उसका प्रेमी उसके अनुरूप हो ।


विनय कुमार झा 


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