बाबा साहेब के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण धार्मिक बातें : विनय कुमार झा

 


परी निर्वाण दिवस 
 

आज 6 दिसंबर है आज के ही दिन एक महान् व्यक्ति पंचतत्व में विलीन हुआ था ।

बाबा साहेब यदि अपने अपने जीवन काल में किसी से नफरत करते हैं तो वह था हिंदू धर्म , बाबा साहेब के लिए हिंदू धर्म में जितनी पीड़ा उठानी पड़ी उससे उनका दिल उतना ही छलनी हुआ । इसलिए बाबा साहेब से हिंदू धर्म के लिए छोड़ने की प्रतिज्ञा 1936 में की थीं । उन्होंने काफी समय तक किसी धर्म को नहीं अपनाया , लेकिन हां सभी धर्मों का अध्ययन ज़रूर करते रहें । और 1956 में बाबा साहेब ने अपने अध्ययन में सर्वश्रेष्ठ धर्म बुद्ध धर्म को पाया । और बुद्ध धर्म के अनुयायी बन गए । बाबा साहेब के समर्थक तकरीबन उसी वक्त दस लाख लोगों ने भी बुधु धर्म को अपनाया । बाबा साहेब का मानना था कि जो धर्म विश्वास और आस्था के बाल बूते पर निर्भर हो में उसे कभी अपना समर्थन नहीं दूंगा । इसलिए उन्होंने ईसाई , इस्लाम , सिख और जैन आदि किसी धर्म को नहीं अपनाया । बुद्ध को में एक खास बात है जो शायद किसी धर्म में ना हो , वह यह हैं बुद्ध अनुयायी कभी भी अपने में नियम परिवर्तन कर सकतें हैं । क्योंकि गौतम बुद्ध ने कभी भगवान के धर्म को नहीं माना उन्होंने धर्म के लिए मानव से जोड़कर रखा । यदि एक धर्म किसी मानव को संगरक्षित नहीं कर सकता तो वह मेरी नजर में धर्म नहीं हैं । बाबा साहेब ने इन्हीं बातों का अनुसरण किया और बुद्ध धर्म के अनुयाई बने ।

बुद्ध धर्म तर्क और अनुभवों पर आधारित है ना कि किसी प्रकार के विश्वास पर बुद्ध ने कहा हैं मेरे द्वारा दिया गया उपदेश या शिक्षा यदि मेरे अनुयाइयों को उचित मालूम ना पड़े तो वह मेरे उपदेश व दी गई शिक्षा में भी बदलाव कर सकते हैं । बाबा साहेब ने जब अन्य धर्मों का अध्ययन किया तो पाया कि धर्मों के संस्थापक ही खुद को भगवान या उनका दूत समझते है । और कहते है की मेरे बिना भगवान से मिलने की आपकी अभिलाषा कभी नहीं होगी । बाबा साहेब ने हिंदू धर्म की कटु आलोचना करते हुए लिखा हैं कि हिंदू धर्म के अवतारी ही खुद परमपिता परमात्मा परब्रम्ह आदि अपने आप को सब कुछ मानते हैं । इसलिए बाबा साहेब ने प्रतिज्ञा की थीं कि वो ब्रम्हा विष्णु महेश में कोई विश्वास नहीं रखते हैं  और ना ही उनकी पूजा करना चाहते हैं ।

इसके साथ साथ बाबा साहेब ने राम और कृष्ण पर यहीं टिप्पणी की ।

बाबा साहेब किसी भी प्रकार से धर्मों के झंझटो में उलझना नहीं चाहते थे ।मगर उन्होंने सोचा यदि में हिंदू रहा तो आनी वाली पीढ़ी भी हिंदू ही रहेगी , और ये जुल्म की दासता तो कभी समाप्त होने वाली नहीं हैं । और ये बात आज सच हो रही हैं । आज भी सवर्ण समाज के लोग दलित समाज से उतनी ही नफरत करते हैं जितनी सदियों पहले अनपढ़ सवर्ण भी किया करते थे । इसलिए बाबा साहेब ने वो धर्म स्वीकार करना उचित समझा जो आने वाली उनकी पीढ़ी और समाज को सिर उठाकर जीने का मौका दे सकें । 

बाबा साहेब ने हिंदू धर्म के लिए एक बीमारी बताया है और कहा है कि ये बीमारी भारत की अन्य जातियों के लिए खतरा है । 

वैसे कोई खास दुश्मनी नहीं थी बाबा साहेब की हिंदू धर्म से बस जातियों के चोचले ने उन्हें इतना आहत कर दिया था कि उन्होंने अपने जीवन में सबसे ज्यादा नफरत सिर्फ वर्ण व्यवस्था से की है जिसका लेखा हिंदू धर्म में प्रमाण सहित उपलब्ध हैं । बाबा साहेब का मानना था कि हिंदू धर्म की सवर्ण समाज हम जैसे व्यक्ति को कीड़ों मकोड़ो की तरह समझती है , या उनसे भी गई गुजरे समझती हैं , क्योंकि उन्होंने लिखा हैं , हिंदू धर्म में जो अधिकार जानवरों को प्राप्त हैं हम उन अधिकारों तक से वंचित हैं । तालाब का पानी यदि जानवर पीले तो तब कोई दोष नहीं है , यदि किसी अछूत व्यक्ति ने हाथ भी लगा दिया तो सारा तालाब का जल अपवित्र हो जाता था । ऐसी मानसिकता थी । जिससे बाबा साहेब बेहद परेशान थे । लोग बाग बताते हैं बाबा साहेब कभी मुफ्त का समय व्यतीत करना नहीं चाहते हैं , इसलिए उन्होंने पढ़ाई के लिए ही उचित मार्ग समझा । क्योंकि यही एक मात्र रास्ता था जो उन्हें इस दरिंदगी से मुक्ति दिला सकता हैं । और बाबा साहेब का वो सपना मैंने कही कहीं सच होते भी देखा हैं एक दलित के कदमों में एक सवर्ण को पड़े देखा हैं । जब कोई दलित पढ़ लिख कर कोई बड़ा अधिकारी बनता हैं तो बाबा साहेब को जरूर बहुत खुशी मिलती होगी ।

आज के नेता लोगों ने बाबा साहेब के बारे ना कुछ पढ़ा ना समझा और उन पर तरह तरह की टिप्पणी करने लगते हैं , अपनी गंदी राजनीति के लिए बाबा साहेब को हथियार बना लेते हैं । 

जिस प्रकार इस्लाम की पाक जगह मक्का में सिर्फ मुसलमान के लिए ही अनुमति मिलती हैं , उसी प्रकार बाबा साहेब का नाम लेने की अनुमति सिर्फ उसे ही मिले जो उनके बताए हुए मार्ग पर चल रहा हो । उनका अनुसरण कर रहा हो । ये नही कि जो उन्हें भगवान मान रहा हो । बाबा साहेब ने कभी अपने आप को महान नहीं कहा , और ना ही उनके साथ वाले नेताओं ने । 

क्योंकि बाबा ने उन्हें कभी कोई फायदा नहीं पहुंचाया । 

बाबा साहेब अपने जीवन की सबसे बड़ी प्रतिज्ञा कि थीं कि हिंदू धर्म में जन्म लेने के लिए में स्वतंत्र नहीं था , लेकिन हिंदू धर्म में मैं  मरूंगा नहीं ।


बाबा साहेब एक बहुत बड़ी बात कहीं थी जो मैं आपको बता रहा हूं : 


भारत देश में यदि हिंदू राष्ट्र की स्थापना सच में हो जाती हैं निसंदेह यह इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य होगा । चाहे हिंदू कुछ भी कहें , हिंदू धर्म स्वतंत्रता  समानता और मैत्री के लिए एक खतरा है । यह लोक तंत्र के लिए असंगत है ।

किसी भी कीमत पर हिंदू राष्ट्र के स्थापित होने से रोका जाना चाहिए । 


बाबा साहेब ने एक टिप्पणी कांग्रेस पर भी की थीं , उन्होंने लिखा हैं

 कांग्रेस हिंदुओ का ही एक संगठन हैं जो उच्च जातियों के व्यक्तियों को ही उच्च पदों पर स्थापित करना चाहता है । कांग्रेस के अधिकांश नेता भारत देश की आज़ादी नहीं बल्कि ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त कराकर खुद शासन करना चाहती हैं ।



क्योंकि कांग्रेस ने उन सभी नेताओं और अपनी पार्टी से बाहर कर दिया था जो वास्तवित रूप से देश की आजादी चाहते थे । जैसे सुभाष चन्द्र बोस ।

कांग्रेस अंग्रजों की मुठ्ठी में थीं , अंग्रेजी सरकार ने कांग्रेस के समक्ष जो भी नियम कानून पेश किया कांग्रेस उन्हें मानती गई । क्योंकि कांग्रेस के लिए देश की वास्तविक आज़ादी से कोई मतलब नहीं था । यदि कांग्रेस भारत को वास्तव में आजाद कराना चाहती तो भारत के सीने एक एक लकीर खींच कर दो देशों में बटवारा नहीं करवाती । मगर लाचच के वशीभूत होकर यह सब करना उन्हें अनिवार्य लगा हों । 


बाबा साहेब की आधी उम्र तो यह साबित करने में गुजर गई कि में भी तुम्हारी तरह एक इंसान हूं । उन्होंने जनता को संबोधित करते हुए कहा था कि हम यहां ये साबित करने आए हैं कि हम भी इंसान हैं प्रकृति की किसी वस्तु पर जितना अधिकार तुम्हारा है उतना ही अधिकार हमारा भी है । 


बाबा साहेब का संपूर्ण जीवन संघर्षों से भरा पड़ा है । वो जीवन भर दलितों और पिछड़े वर्ग के व्यक्तियों को उनके अधिकार दिलाने के लिए लड़ते रहे । 


सच में वो एक महान् व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे । 

उन्हें सादर नमन करते हैं ।।


Vinay Kumar Jha



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