आज भी कहीं ना कहीं निर्भया बिना न्याय के दम तोड़ रही हैं :

 

काल्पनिक चित्र 



किसी ने कहा कि – 

वह वहशी नज़रों से पर्दा बेहिसाब करती हैं ।

वो मुसलमां नहीं है फिर भी हिजाब करती हैं ।।


निर्भया केस के लिए आज पूरे नौ वर्ष पूरे हो गए हैं , मगर कहीं न कहीं हमें या आपको यह नही लगता कि आज भी कोई निर्भया न्याय पाने की दिलासा से कतार में खड़ी हुई हैं । निर्भया केस के उपरांत हमारी सरकार ने कानून में बहुत कुछ बदलाव किए , देश की महिलाओं के लिए काफी सुविधाएं उपलब्ध कराई । इतना सब कुछ होने के बाद आज कहीं से कोई महिला सुरक्षित नजर नहीं आती । 

आज भी एक लड़की के लिए घर से निकलना काफी सामान्य सा महसूस होता हैं मगर उसका बापिस लौटना आज भी खतरों से भरा हुआ है । इसकी वजह साफ है की आज भी इंसान हैवानियत गुलाम बना हुआ हैं । हमारी सरकार ने हैवानों को पहचाना और उन्हे मौत के सुपुर्द कर दिया । जबकि वास्तव में जरूरत थी इंसानों के भीतर के हैवान को मारने की , उसे खत्म करने की । इसमें कहीं ना कहीं हमारा कानून भागीदार हैं या उसके बनाने वाले क्योंकि जो कानून हैवानियत को नष्ट ना कर सकें वो कानून किस काम का । जैसा की हमें इतिहास से ज्ञात है कि वर्षों से हम दोषियों को सजा देते आ रहे , जिसमें अधिकांश जुर्म के लिए सजा ए मौत का प्रावधान रहा हैं ।

मगर इससे हमें क्या हासिल हुआ । हमनें भी हैवान को खत्म किया और दिन प्रतिदिन हैवानियत बढ़ती ही गई । जिसका नतीजा आज सामने देखने को मिल रहा कि इतने कड़े कानून होने के बावजूद लोग जुर्म या हैवानियत करने से बाज नहीं आते हैं । दिन प्रतिदिन ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे जो मानवता को शर्मशार कर रही हैं । 

यदि इतने वर्षों के बाद भी एक निर्भया न्याय के मंदिर की दहलीज पर दम तोड़ रही हैं । तो उसका जिम्मेदार हमारा कानून और हमारी लालची सरकार हैं , जिसने जुर्म करने वालों के सीने में हिम्मत बंधा रखी है । 

बल्कि आज के समय में सख्त जरूरत है एक ऐसे कानून की , जो व्यक्ति जुर्म की दुनियां में सिर उठाकर जी रहे है उन्हें समाज के सामने जलील करके मौत के घाट उतारने कि अर्थात मृत्यु दण्ड देने के । ताकि आने बाली नस्ले जुर्म की दुनियां में कदम रखने से पहले सौ बार सोचे । 

अब नहीं दोहराई जाती हमसे किसी निर्भया की दर्द भरी कहानी , हमें हमारी सरकार जबाव दे आखिर यह हमें कब तक सहन करना पड़ेगा । वही निर्भया केस ने तो सारे देश को झकझोर कर रख दिया था । 


लेखक अज्ञात 



यह घटना दिसंबर 2012 तारीख 16 , तकरीबन 10 बजे रात की हैं । 

इस घटना की शुरुवात रविवार 16 दिसंबर 3 बजे के आसपास होती हैं , कहा जाता हैं कि निर्भया (काल्पनिक नाम) ने 3 बजे अपने किसी मित्र को फोन किया और उससे किसी फिल्म को देखने का जिक्र किया । उसका मित्र मान जाता हैं और ये घर से अकेली निकल पड़ती हैं । निर्भया अपने मित्र के साथ कुछ वक्त गुजारती हैं , और साथ में मूवी भी देखती हैं । जिसके रहते समय तकरीबन रात के 9 बज जाते हैं । स्थानीय लोगों की माने तो कहा जाता हैं निर्भया से टैक्सी वालों से द्वारिका चलने के लिए कहा , मगर कोई जाने को तैयार नहीं हुआ । तभी एक सफेद बस निर्भया के पास आकर रुक जाती हैं और आवाज आती हैं आपको कहां जाना है । निर्भया को द्वारिका जाना होता हैं बस वाला बैठने के लिए बोलता है कि हां बस जायेगी । मगर इससे पहले निर्भया का मित्र ऐसी चार्टेड बस में बैठने से इंकार कर देता हैं कि ऐसी बसों में मत बैठा करो । मगर अन्य कोई साधन ना होने की वजह से उन्हें उसी बस से सफर करना पड़ा । बस में कुछ 6 लोग थे और दो यह । इन्हें लगा कि यह भी हमारी तरह यात्री हैं और कहीं जा रहे हैं । उनकी जगह यदि हम होते तब यही सोचते कि कोई हमारी तरह यात्री ही है । मगर उन्हें क्या पता कि यह 6 के 6 हैवान हैं जो पूरी तरह से हैवानियत से भरे पड़े हैं । इसके बाद जो दिल्ली की सड़को पर हुआ उससे पूरे देश में शौक में लहर दौड़ गई । ऐसी हैवानियत जिससे रूह कांप उठे , वो दर्द हमनें देश की आखों में देखा और महसूस किया । जगह जगह लोगों ने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया मगर शान्तिप्रिय ढंग से । जहां एक तरफ कुछ लोग नए वर्ष की खुशियां मनाने में जुटे थे वहीं दूसरी ओर निर्भया ज़िंदगी और मौत पर लड़ रही थी । मगर दरिंदों ने उसे बहुत बुरी तरह ज़ख्मी कर दिया जिससे उसका बच पाना मुश्किल था । वो अपनी ज़िंदगी की जंग लड़ते लड़ते 29 दिसंबर 2012 को निर्भया ये जंग हार गई । मगर उसके न्याय की जंग अभी जारी थी ।

 ये जंग बहुत लंबी चली , 7 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद कोर्ट का फैसला उन हैवानों की मौत बनकर आया । 


राष्ट्रपति ने निर्भया को न्याय स्वरूप मृत्यु उपरांत रानी लक्ष्मी बाई पुरस्कार से सम्मानित किया । और निर्भया भवन की आधार शिला रखी ।

इसके अलावा अमेरिका ने इंटरनेशनल वुमन ऑफ करेज अवार्ड से सम्मानित किया । ( विकिपीडिया अनुसार ) 


ये जंग अभी खत्म नहीं हुई है एक या दो हैवान के खत्म कर देने से, हमें उनके दिलों से हैवानियत को खत्म करना है । तभी सही मायने में हैवान का अंत सुनिश्चित होगा ।। 


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