ऐ अश्क ना तोड़ अपनी हदें जरा उन्हें भी तो रोने दें ।।
कैसे होती हैं यादें जरा उन्हें भी कुछ अपना खोने दें ।
गुज़र जाती हैं कभी कभी ए तकलीफे हद से ,
जरा ये दिलों कि तकलीफे भी उनकी रूह में तो उतरने दें ।।
ऐ अश्क ना तोड़ अपनी हदें जरा उन्हें भी तो रोने दें ।।
जानें दे मुझे घर से तू
मेरी जीत बाकी है ।
अब ना रोक मुझको तू भी
ये ज़िन्दगी मेरी धरती मां की है ।।
आबरू उसकी ख़तरे में है ,
मुझको हर हाल में जाना होगा ।।
है कर्ज मुझ पर भी उस मां का ,
मुझे उसका कर्ज चुकाना होगा ।।
कहो प्रिय मेरी सीते बन सकते हो क्या : कविता |
वो जो हाथों में लिए सामान आ रही हैं ।।
कुछ अधिक नहीं वो मौत का फ़रमान ला रही हैं ।।
जिया था जो अब तक मेरा हमसाया बनके ,
आज वहीं दफनाने मेरा नाम जा रही हैं
जब कभी तन्हाई का सुरूर दिल पर छाता है
आंखो में आंसु और दिल में दर्द उमड़ आता है
कैसे बताऊं अपनी बेबसी का आलम यारों ,
उस वक्त हमें हमारा ललितपुर याद आता है ।।
अरे कब तक अपनी किस्मत कोसते रहोगे ।।
अरे कब तक सूरज की रोशनी का इंतजार करोगे ।।
उठालो चिराग हाथों में और निकल पड़ो ,
अगर ना मिली मंजिल तो ख़ुद को कोसते रहोगे ।।
ना कूवां प्यासे के पास जाएगा
ना टूटा तारा कभी जमीं पर आएगा ।।
गर हो सिकंदर अपनी किस्मत के ।।
तो यकीं मानो,
ये ऊचा आसमां भी आपके कदमों में नज़र आएगा ।।
वो सच्चाई की मूरत है,वो चरित्र बेदाग हैं : Kavita By Vinay Kumar Jha |
इन जलती हुईं चिताओं से जब आग धधकती होगी..
असहनीय पीड़ा मेरी धरती मां को होती होगी....
ये लपटें ये धुआं जब गगन छूता होगा....
यकीं मानो यारों वो आसमां भी रोता होगा...
तो कैसे वो अपने कलेजे के टुकड़े को मरता हुआ देखे....
जिसने खुद भूखा रह कर भी उसे दूध पिलाया होगा....
जब गुजरे जनाजा मेरा तेरी गली से तो याद रखना ।
इश्क में गुजरी यादों की बारात सजाकर रखना ।।।।
गर आना कभी भूल से मेरी मजार पर तो...!!!!!!
हाथों में दो फूल और और आखों में आंसु रखना ।।।
कमबख्त सर पर चढ़ा रखा था मैने
इश्क ने चमाचा दिल पर मारा हैं ।।
जहां जीत कर भी क्या करता ए दिल,
जिससे जीता ये दिल उसी से हारा हैं ।।
मैं आज की नारी हूं : कविता : Vinay Kumar Jha
अब बहनें कैसे संभलेगी इन दरिंदो की मार से,
इंसानियत भी डोल उठी है ऐसे कु कृत्य कार्य से ।।
शर्मशार है मातृभूमि ए मानव तेरी हार से ,
आसमान भी रो रहा है बहन तेरी चीख पुकार से ।।
अब बहनें कैसे संभलेगी इन दरिंदो की मार से - 1
लाज शर्म सब छोड़ दी तुमने अब नंगा नाच दिखाते हैं ,
और मारकर खोख़ में बेटी को हमें इंसानियत सिखाते हैं ।
हैवान वो बनकर बैठे है जो जीते थे कभी प्यार से ,
अब बेटी सड़कों पर कैसे चले और चले किसके ऐतबार से ।।
अब बहनें कैसे संभलेगी इन दरिंदो की मार से - 2
बेटी बनना ही गुनाह है जो न बच पाती इस तिरस्कार से ,
इसलिए बेटी कहती हैं कि हमें मुक्त करो संसार से ।
वो खोख की मौत बेहतर होगी किसी दरिंदे के शिकार से ,
बोलो क्यों जिए हम और किसके अधिकार से ।।
अब बहनें कैसे संभलेगी इन दरिंदो की मार से - 3
अब लाख क़यामत ठालो हमपर, यारो हम रुक ना पायेंगे ।।
बेटी को इंसाफ दिलाने आए है, इंसाफ दिला कर जाएंगे ।।
जिन लोगों के दिलों में तू अपने लिए मुहब्बत ढूंढ़ रहा है ,
जाया मत कर वो वक्त बल्कि उसे अपनी कामयाबी में लगा दे ।
क्योंकि जहां मिठास होती है
वहां चीटियो का जमावड़ा अक्सर लग ही जाता है ।।
Vinay kumar Jha
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