ये गरीबों की जिंदगी है साहब रो रो कर काटनी पड़ती हैं : कविता विनय कुमार झा

 गरीब 



हर पल जिंदगी हमारी रंग बदलती है ।
चंद खुशियां देकर गमों भरी रात देती है ।।
कोई खुशी जबर्दस्ती तो कोई छीननी पड़ती हैं ।।
ये गरीबों की जिंदगी है साहब रो रो कर काटनी पड़ती हैं ।।
धब्बा चारित्र पर हमारे ग़रीबी का लगा हैं ।।
इसलिए हम पैसे वालों कि नजरों में बदनाम है ।।
जरा इंसानियत को ध्यान में रखकर सोचो साहब ,
हम भी तुम्हारी तरह एक इंसान हैं ।।
चीख चीखकर अपनी मजबूरियां सुनाऊं ,
इतना भी गिरा ईमान नही है मेरा ,
हमें किस्मत ने ठुकरा दिया है ,
वरना इतना भी बदनाम नाम नहीं है मेरा ।।
ख़ून पसीना बहा बहाकर हम अपना घर चलाते हैं 
क्या इसीलिए ये पैसे वाले हमें गरीब बुलाते हैं ।।
पढ़ा लिखा कर मेरे मां बाप ने मुझे काबिल बना दिया ।।
काम मांगने शहर में निकला ,
शहर वालो ने गरीब कहकर जाहिल बना दिया ।।
आंसुओ के मोती आंखों में भर कर हम चौराहों पर खड़े हो जाते हैं ।।
और सारी डिग्रीयों की क़ीमत को मात्र तीन सौ रुपए लगाते हैं ।।
इन बाजारों में हमारी मेहनत कोड़ियो के भाव बिकती हैं 
अरे साहब हमारी पढ़ाई लिखाई ही हमें बर्बाद करती हैं ।।
इस कड़कती धुप में हर रोज एक ख्वाब टूटता है ।
जो वर्षो पहले सजाया था सपना वो हर शाम ढलते ही रोज टूटता है ।।
की आदत थी जिन हाथों को अब तक कलम चलाने कि ,
अब वहीं हाथ मजदूरी करके घर चलाते हैं ।
क्या इसीलिए ये पैसे वाले हमें गरीब बुलाते हैं ।।
परिवार हैं मेरा भी पर उनसे कोसों दूर रहता हूं ।।
दर्द में पूछे कोई हाल तो में उसे अच्छा ही कहता हूं ।।
ताउम्र भटकते भटकते ही गुजार देता हूं ।
और खुद की कहानी ख़ुद ही दोहरा देता हूं 
और जलाकर अपनी डिग्रीयों को ,
में फ़िर एक गरीब को जन्म देता हूं ।।।।।।।

Write By — Vinay Kumar Jha ।। ( 24 जनवरी 2021)

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