जब कठ्ठरपंथी अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाती हैं , तब किसी भी शक्तिशाली राष्ट्र या मानव समाज का भी पतन हो जाता हैं ।

 धार्मिक कठ्ठरता और विचारधारा


लेख – विनय कुमार झा


जब कोई व्यक्ति मां का ही दूध पीकर मां के लिए या मां की गाली दे । तब कैसा महसूस होता हैं । इस दूध पिलाने वाली मां के लिए या किसी के द्वारा दी गई मां की गाली सुनने वाले के लिए । आप हमें इस बात का जवाब नीचे कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं । 

आज ऐसी ही एक कहानी मैं कहने जा रहा हूं , जो ऐसे ही अनुभव पर आधारित हैं । इस कहानी की ना कोई शुरूवात हैं ना कोई अंत क्योंकि यह कहानी पूर्णत काल्पनिक है ।


इस कहानी की कुछ शुरूवात आजादी से पहले ही हो जाती हैं । और धीरे धीरे यह कहानी समय के साथ साथ बढ़ती और मजबूत होती जाती हैं। देश में सोशल मीडिया माध्यम ना होने की वजह से यह कहानी धीमे रफ्तार से चलती हैं । मगर सोशल मीडिया माध्यम के आ जाने यह कहानी और रफ़्तार पकड़ लेती हैं । 

आपको हैरानी जरूर हो रही होगी आखिर मैं किस कहानी की बात कर रहा हूं । मगर बिल्कुल हैरान मत होइए क्योंकि यह कहानी वह है जो किसी भी राष्ट्र को पतन की ओर ले जाती हैं ।


अब तक इस कहानी के विचार एक जगह ही सीमित थे अब वह विचार आसानी से दुनियां के किसी कोने में पलक झपकते ही पहुंचाए जा सकते हैं । 

देश के संविधान में वर्णित स्वतंत्रता के अधिकार के अनुरूप कार्य करने बजाय , लोगों ने विपरीत कार्य करना प्रारंभ कर दिया । मगर फिर भी इस कहानी को उतनी रफ़्तार अभी भी नहीं मिली जिससे किसी व्यक्ति की आज़ादी व अधिकारों को ठेस पहुंचाई जा सकें । इसके बाद इस कहानी के एक नए अध्याय की शुरुवात होती हैं , भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी बनारस सीट से 2014 में अपना पद भार ग्रहण करते हैं । हमारे प्रधानमंत्री जी सत्ता में आने से पहले कई महत्वपूर्ण दावा और वादे करते हैं । जो हमारे भारत की परंपरा रही हैं । हालांकि उन्होंने अपने किए वादे पूरे किए । उन वादों में से एक वादा था श्री राम मंदिर निर्माण का , वह भी पूरा किया । 

कई बुद्धिजीवियों की माने तो श्री राम मंदिर निर्माण सिर्फ मुद्दा था , सत्ता को पाने का । मगर जो भी ये कहानी श्री राम मंदिर निर्माण से एक अध्याय में प्रवेश कर जाती हैं । और लाखों करोड़ों लोगों की एक साथ आस्था जाग्रत हो जाती हैं । हमारी कहानी का आस्था से कोई वास्ता नहीं है । मगर यह आस्था सिर्फ अपने मन में सीमित ना होकर चिल्ला चिल्ला कर कहने लगी कि हम प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त हैं । 

यह वक्त था इक्कीसवी सदी के दूसरे दसक का जब लोगों ने अपने धर्म को हतियार बना लिया और और अन्य धर्मों पर अपने हतियार से वार करने लगें ।

उन्हें नीचा दिखाने उनकी आस्था में विघ्न डालने या धर्म परिवर्तित करने पर जोर डालने लगे । 

मुझे अभी लगता हैं की मेरी इस कहानी ने अभी भी वो रफ़्तार नहीं पकड़ी जो उसकी आख़िरी सीमा होगी । अब में अपनी कहानी में और नया अध्याय जोड़ने जा रहा हूं , जिसकी शुरूवात उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी से शुरू होता हैं । हिंदू धर्म के अनुसार योगी आदित्यनाथ जी जन्म से क्षत्रिय और कर्म से ब्राम्हण हैं । योगी जी सत्ता में आते हैं शुरूवात जय श्री राम से होती हैं । और इसी के साथ यह भी तय हों जाता हैं योगी जी हिंदू कठ्ठर प्रवृत्ति के हैं । जिससे मेरी कहानी को ओर अधिक रफ़्तार मिलती हैं । अभी भी मेरी कहानी की रफ़्तार अपनी चरम सीमा पर नहीं पहुंची है । बल्कि इससे तय अवश्य हो गया है कि यह कभी भी अपनी चरम सीमा लांग सकती हैं । 

योगी जी के हाथ सत्ता आते ही उन्होंने अपने कार्यों को अंजाम देना शुरू कर दिया चाहे वो कार्य राष्ट्र हित में हो या धर्म हित में । 

लेकिन योगी जी के सत्ता में आने से जिस प्रकार कठ्ठरता में वृद्धि हुई है वो शायद अन्य धर्मों के लिए सार्थक साबित ना हो । मेरा मानना है कि किसी भी धर्म की कठ्ठारता मानव विनाश और पतन का कारण होती हैं । जिसका जीवंत उदाहरण अफगानिस्तान हैं । 

मैं एक और बात निश्चय तौर पर कह रहा कि यदि सत्ता में फिर से योगी आदित्यनाथ जी की सरकार आई तो अन्य धर्मों के व्यक्तियों के लिए खतरा बन कर उभरेगी । क्योंकि लोगों ने अपनी आंखों पर धार्मिक कठ्ठरता का पर्दा डाल लिया है । और यह भूलते जा रहे हैं उनका जीवन उतना किसी आस्था से नहीं जितना विज्ञान से जुड़ा है । सारी उम्र में जितनी दफा प्रभु श्री राम का नाम नहीं लिया होगा । उससे कहीं अधिक बार विज्ञान का नाम और उसका उपयोग कर लिया होगा । 

संपूर्ण विश्व में यदि आज शांति हैं तो वह विज्ञान की बदौलत ही मुमकिन हुआ । क्योंकि जब तक विज्ञान का समुचित विकास नहीं हुआ था , तब तक हम एक दूसरे के अकारण ही दुश्मन बने हुए थे । किसी की सत्ता तो किसी का धन तो किसी की स्त्री छीनने में लगे हुए थे । आस्था और श्रद्धा उस वक्त भी थी मगर विज्ञान नहीं थी । चारों तरफ़ मातम ही मातम फैला रहता था । क्योंकि किसी को किसी बात या किसी व्यक्ति का भय नहीं था । सभी के सभी इस प्रकार स्वतंत्र थे , की वह किसी को भी आसानी से नुकसान पहुंचा सकते थे । मगर आज यह सब संविधान के दायरे में और डर के दायरे में हैं तो यह संभव हुआ तो सिर्फ विज्ञान की वजह से । यहां एक बात खास ध्यान देने की जरूरत है कि , मैं विज्ञान की तुलना किसी भी आस्था या धर्म से नहीं कर रहा हूं । दोनों अपनी जगह पर सही है । बल्कि यह बताने की कोशिश कर रहा हूं कि जितना इस संसार में जीवन जीने का हक हैं उनता ही हक एक अन्य व्यक्ति का भी हैं । 

अभी मेरी कहानी समाप्त नहीं हुई है , आप जिस विज्ञान का बना मोबाइल और नेटवर्क का उपयोग करके अपनी आस्था का गुणगान कर रहे हो , फिर क्यों ये भूल जाते हो की वह किसी धर्म की देन नहीं है । बल्कि विज्ञान मानव निर्मित है । और एक बात जिस मानव ने इसे बनाया है , उसकी आपकी आस्था में कोई रुचि नहीं है । 

इसलिए मैं कहना चाहता हूं कि विज्ञान का उपयोग करके उसका दुप्रयोग ना करें । यानी मां का दूध पीकर मां किसी को मां की गाली ना दें ।


मैं जिस कहानी की रफ़्तार कि बात कह रहा हूं , वह वाकई में कठ्ठरता की रफ़्तार जो योगी के शासन में आने के उपरांत बड़ी हैं ।और यह रफ़्तार यदि अपनी चरम सीमा को पार करती हैं तो निश्चय ही मानव जाति के लिए खतरा बन कर उभरेगी ।



( मेरे लेख का मकसद किसी व्यक्ति की भावना व आस्था को आहत करना बिल्कुल भी नहीं है । बल्कि मेरा मकसद मानव जाति के प्रति प्रेम और विश्वास जगाने का है और मानव जाति का कल्याण करना है )


लेखक – विनय कुमार झा 


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