बाकी चंद लम्हों का सफर है , kavita by vinay kumar jha । Baki chand lamhon ka safar hai

 साया है मेरे सर जिसका वो मेरी मां मेरा रहवर है । 




1

बाकी चंद लम्हों का सफर है

घनी अंधेरी रात का बसर है

उजाले का कोई जिक्र नहीं

ज़िंदगी में गमों का कहर हैं 

सुनसान राहें अजनबी मोड़ है

मेरी मंजिल जाने किस ओर हैं

खतरे के निसां अब हर ओर हैं 

मैं सलामत उसको मेरी खबर है

ये उसकी दुआओं का असर है 

लौटूंगा ना खाली हाथ मैं 

मजबूत इरादे हौसलों में पर हैं 

साया है मेरे सर जिसका 

वो मेरी मां मेरा रहवर है । 


2

सुनो दर्द समझ सकते हो मेरा 

कैद हूं पिंजरा तोड़ सकते हो मेरा ।


3

दोस्ती की है मैने दिल्ली की जिन 

गलियों से निभाने जरूर आऊंगा ।

भले ही झूठी निकले मुहब्बत मेरी 

मगर जताने जरूर आऊंगा ।।।।।

ऐ दिल्ली की गलियों सुनलो दिल

छोटा मत करना ।।।।।।।।।।।।।।।

दिल में बसी है दिल्ली ये दिखाने 

ज़रूर आऊंगा ।।।।।।।।।।।।।।।।


4

बचपन में लिखीं एक कहानी मिली ,

धड़कन भी उसकी मेरी दीवानी मिली

हर ख़्वाब सा मेरा पूरा हुआ 

जैसे मुझे मेरे सपनों की रानी मिली ,


Kavita by — विनय कुमार झा 

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