हिंदी शायरी ~ विनय कुमार झा
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Vinay Kumar Jha |
जब मै छोटा था सारी गली मुझ पर मेहरवान थीं ।
मुझे खिलाते खुद खेलते जैसे में उनकी जान थीं ।।
थोड़ा बड़ी क्या हुईं नफरत की वजह बन गई
अब मैं दाने दाने की मोहताज बन गई ।
जब मैं भूखा थीं तब सिर्फ मेरी मां ही मेहरबान थीं ।।
मां को गुम हुए यहां कई दिन गुजर गए ।
अब मेरे कई भाई बहिन भूखे ही मर गए ।।
मैं भी किसी पल मरने को तैयार हूं ।।
जब तक रहा साथ रहा ।
पता नहीं कैसे आबाद रहा
बरबादियों में भी हंसता रहा
अब कौन पूछे किसे क्या याद रहा ।
जाओ सब कुछ माफ रहा....🖤
Friendahip breakdown
राजनीति छोड़ दी हमने क्योंकि
खादी कुर्ते में अक्सर बेईमान बसते हैं ।
मैं कलम का बादशाह हूं मेरी जां
मेरी कलम में मेरे प्राण बसते हैं ।।
हां अकेला ही निकला था , मंजिल की ओर
में चलता गया और कारवां बढ़ता ही गया ।।
बस कुछ ही मील बाकी है सफर पूरा होने में ,
साथ छूटते जा रहे हैं में बढ़ता जा रहा हूं ।। ।
सामना हुआ मेरा भी राहों पर कई मुश्किल हालातों से
मैं झुक गया मंजिल मेरी दूर थी , अन्यथा में टूट जाता । ।
मैं गुमनाम सा परिंदा भटकी हुई मंजिल की तलास में भटक गया ।
मेरा भटकना लाज़मी था क्योंकि बिना मंजिल पाए मरना बुजदिली था ।
कभी हसीं नहीं गई मेरी होटों से
जब तक तू मेरे साथ रहा.....🥀
मैं गम में भी ऐसे जिया जैसे
हजारों खुशियों से आबाद रहा..🥀
~ विनय कुमार झा
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