कविता : ये बसंती बेलों जरा झूम कर दिखाओ
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बरगद का वृक्ष |
ये बसंती बेलों जरा झूम कर दिखाओ ।
कोयल ने कूका हैं जरा नाच कर दिखाओ ।
पतझड़ आया है चमन में अभी
सावन आए तो बरस कर दिखाओ ।
चलो अभी चलते हैं हम
जल्द ही मुलाकात होगी ।
सावन को आने दो
जब जमकर बरसात होगी ।
लम्हों से अब ऐसी खता ना होगी
सावन में ही मुलाकात होगी ।
इस तपती धूप में
और सुलगती राहों में जरा ठहर कर दिखाओ
ये बसंती बेलों जरा झूम कर दिखाओ ।
जब शहर को दरकिनार करके
गांव में पहुंचता होगा
जब छुक छुक की आवाज सुनकर
तुम्हारा दिल धड़कता होता ।
ऐसी आहत को संजो कर दिखाओ
ये बसंती बेलों जरा झूम कर दिखाओ ।
टेडे मेडे रास्तों पर जब ख्वाब बिखरे होंगे
राह तकती आंखो में जब छाले पड़े होंगे
धीमी सी आवाज़ देकर मुझे पुकार कर दिखाओ
ये बसंती बेलों जरा झूम कर दिखाओ ।
बूंदों का शोर जब धरा पर छम छम करने लगे
मेरे आंगन तक खेतों की खुशबू जब पहुंचने लगे
मिट्टी में सने पांव लेकर मेरे घर तक आना
सावन की पहली फुआर से खुद को भिगोना
जल उठे जब वदन इन बूंदों से
तन पर मेरी यांदों का लेप लगाना
जब निकले आह तन से
जरा मछली सा तड़फ कर दिखाना
मैं बहार बनकर लौटूंगा
बस तुम चमन बनकर मुस्कुराओ
ये बसंती बेलों जरा झूम कर दिखाओ ।।
कविता : विनय कुमार झा
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