चार नंबर प्लेटफार्म : एक अनकही कहानी

 दो किलो मीटर दूर और तीन मिनिट बाकी 


जबलपुर सुपरफास्ट एक्सप्रेस इंदौर 


मैं नरबल चौराहे ( इंदौर) पर किसी मैजिक का इंतजार कर रहा हूं , तभी कुछ ही समय में एक मैजिक मेरे सामने से गुजरा , मैंने उसे रोका और ड्राइवर से पूछा भैया आप स्टेशन चलेंगे , उसने कहां नहीं , मैं सिर्फ उज्जैन नाके तक ही जाऊंगा । तभी उसी समय वहां से एक बस गुजरी जो स्टेशन जा रही थी , मुझे एक मैजिक में बैठी सवारी ने बताया कि ये बस स्टेशन जायेगी । 

उसके इतना कहते ही , मैं पलक झपकते ही बस में चढ़ गया । शायद समय हो रहा था छः बजकर चालीस मिनट । मैंने बस में बैठकर आराम से एक लंबी सांस खींची और सुस्ताया । बस चल पड़ी मुझे पूरा यकीन था कि मैं समय के रहते स्टेशन पहुंच जाऊंगा । बस जगह जगह रुकती अपनी गति से चलती आगे बढ़ती गई । धीरे धीरे बस में से सवारियां उतरने लगी स्टेशन पहुंचने से पहले लगभग चार किलो मीटर की दूरी पर बस वाले ने बस खड़ी कर दी , क्योंकि उसके पास इतनी सवारी नहीं थी कि वो बस आगे ले जा सकें । तभी हमें (अन्य सवारी) बस कंडक्टर ने सांत्वना दी और कहा हम आपको दूसरी बस से स्टेशन तक पहुंचा देंगे । मैंने बस वाले से कहा कि भैया मेरी ट्रेन बस तीस मिनिट में चल देगी। मेरी ट्रेन चूक भी सकती हैं उसने कहा परेशान मत हो समय से पहुंच जाओगे । दूसरी बस आती हैं हम सभी उस बस में चढ़ जाते हैं बस चल देती । 

जब मै स्टेशन पहुंचता हूं उस वक्त मेरे पास दस मिनट थे ट्रेन पकड़ने के लिए । लेकिन मैं स्टेशन से बाहर था । मन में घबराहट हो रही थी । कहीं ट्रेन ना चूक जाए । क्योंकि मुझे ये भी पता नहीं था की चार नंबर प्लेटफार्म कहां हैं और एक बात क्या मेरी ट्रेन चार नंबर प्लेटफार्म पर ही आएगी । इसलिए पहले मैं एक नंबर प्लेटफार्म की तरफ भाग कर गया । मगर वहां कुछ अंधेरा सा होने की वजह से मैं बापिस आ गया । और अपनी विपरीत दिशा में भागने लगा । मैं भागकर पांच नंबर प्लेटफार्म पर पहुंच जाता हूं । और आगे की बढ़ता हूं । तभी मुझे लगता हैं कि किसी से पूछ लेना ही बेहतर होगा कि चार नंबर प्लेटफार्म कहां हैं । मैं एक दुकान वाले से पूछता हूं कि भैया चार नंबर प्लेटफार्म कहां हैं । उसका जवाब वाकई चौकाने वाला था उसने कहां की आपको यहां से बाहर जाना होगा यहां चार नंबर प्लेटफार्म नहीं है । धड़कने बेकाबू हो जाती हैं । मैं तुरंत दौड़कर बाहर की ओर आता हूं और एक टिकट काउंटर पर फिर पूछता हूं कि भैया चार नंबर प्लेटफार्म कहां हैं और जबलपुर सुपरफास्ट क्या उसी प्लेटफार्म पर आएगी । वो कहता हैं आपको सीढ़ियों से उतरकर नीचे जाना है और सीधे जाना है , थोड़ा दूर हैं आपको उस पार जाना होगा । मैं दौड़कर नीचे आता हूं और मन ही मन सोचता हूं कि अब मेरे पास मात्र पांच मिनिट बचे हैं मुझे और अधिक नहीं भटकना होगा । मुझे जल्द से जल्द किसी ऑटो रिक्शा को पकड़ना होगा। क्योंकि वही मुझे मेरे प्लेटफार्म तक पहुंचा सकता हैं । मैं नीचे आता हूं और एक टैक्सी चालक से पूछता हूं की मुझे चार नंबर प्लेटफार्म पर जाना है छोड़ दोगे क्या ? वो कहता हैं भईया आपको उस पार जाना है और समय मात्र तीन मिनट रह गए हैं छोड़ देंगे मगर सौ रुपए लगेंगे । मैंने कहां भैया छोड़ दो मुझे वहां तक पचास रुपए ले लेना । वो किसी और टैक्सी चालक से कहता हैं की इन भैया को सिया गंज वाले चार नंबर प्लेटफार्म पर छोड़ आओ । जबकि ये दोनों चालक आपस में पैसे का कोई वार्तालाव नहीं करते हैं कि कितना पैसा लेना । 

मेरे पास समय था तीन मिनट का और दूरी थी दो किलोमीटर की , शायद खुले मैदान में यह दूरी तय करना संभव हो लेकिन स्टेशन की भीड़ भाड़ में यह दूरी तय करना लगभग ना मुमकिन सा था । टैक्सी चालक को यकीन था कि मैं समय से मुझे चार नंबर प्लेटफार्म पर पहुंचा देगा , तो मैंने भी अपना आत्मविश्वास नहीं खोया । और अपनी दुगनी हिम्मत के साथ बैठा रहा । 

मुझसे टैक्सी चालक ने कहा कि भैया पकड़ कर बैठना । इतने में , मैं समझ गया कि ये अपनी टैक्सी को उड़ाने वाला है । और मुझे समय से पहुंचा कर ही मानेगा । 

लेकिन इससे पहले उसने मुझसे पैसों के बारे में भी कहा कि भैया सौ रुपए लूंगा तभी में आपको चार नंबर प्लेटफार्म पर छोड़ने जाऊंगा , वरना आप उतर सकते हो । मैंने कहा भैया पचास रुपए में मेरी बात उन भैया से हुई थी जिन्होंने मुझे आपकी टैक्सी में बैठाया । उसने कहा अगर पचास रुपए में कोई छोड़ने आता तो वो खुद ही क्यों नहीं आ जाता । मैं समझ गया की ये मेरी मजबूरी का फायदा उठा रहा हैं । मैने कहा भैया सत्तर रुपए ले लेना । मगर मुझे जल्दी छोड़ दो । उसने कहा नहीं । फिर मैंने पूछा कितने रुपए लेंगे आप , उसने कहा चलो अस्सी रुपए दे देना छोड़ देता हूं । मैने कहा ठीक है । 

हमारा इतना वार्तालव टैक्सी में चलते हुए ही हुआ । 

उसने अपनी टैक्सी को बड़ी सूझबूझ से और तेजी से चलाकर मुझे चार नंबर प्लेटफार्म पर छोड़ ही दिया । लेकिन इससे पहले टैक्सी दो बाइक वालो से टकराती हुई बाल बाल बची । मैंने टैक्सी चालक को पैसे दिए और टैक्सी से उतर गया । उसने कहा अब जल्दी जाओ । मैंने सिर्फ उससे ठीक है ये शब्द कहें ना उसका धन्यवाद किया । 

क्यों ये आप समझ सकते हैं । 

मैं दौड़कर प्लेटफार्म की सीढ़ियों पर चढ़ा और हाफते हुए एक दुकानदार से पूछा कि भैया चार नंबर प्लेटफार्म कहां हैं । उसने कहा यही है । फिर मैंने पूछा कि जबलपुर सुपरफास्ट ट्रेन कहां खड़ी है । उसने कहा यही है । 

आप यकीन मानो मेरे पास इतना भी समय नहीं बचा था कि मैं ट्रेन पर लिखे कुछ शब्द या अपनी ट्रेन संख्या पढ़ सकूं । धड़कनों की गति और सांसों की गति लगभग बराबर ही थी । क्योंकि साढ़े सात बज चुके थे । 

ट्रेन को अपनी आंखों के सामने खड़ा देखकर मैंने फिर एक बार चैन की सांस ली और सामने टंगी घड़ी में देखा समय हो रहा था सात बजकर तीस मिनिट । 

थकान , माथे पर पसीना , धड़कनों में बैचेनी , और गले का सुखना मुझे चैन नहीं लेने दे रहा था । 

ट्रेन चल पड़ी थी और मैं अभी तक प्लेटफार्म पर ही खड़ा था । मैंने अपने बैग से बीस रुपए निकाले और एक ठंडी पानी की बॉटल खरीदी । जिसकी कीमत मात्र पंद्रह रुपए थी मगर मुझे चलती ट्रेन को देखकर बीस रुपए देने पड़ें । 

मैं ट्रेन में चढ़ गया ट्रेन कुछ ही दूरी पर चली और किसी ने चैन खींच दी ट्रेन प्लेटफार्म पार करने से पहले ही रुक गई । मैं समझ गया अब ट्रेन पांच मिनिट तक रुकी रहेगी इसके बाद ही आगे बड़ेगी । मैं ट्रेन से नीचे आया और हाथ धोने के दो स्ट्रिप्स खरीदे । फिर मैं ट्रेन में चढ़ गया । 

और अब ट्रेन चल रही हैं , मैं इंदौर से भोपाल की यात्रा कर रहा हूं और अभी देवास से आगे निकल चुके हैं । 



मैं सुरक्षित हूं और खुश भी । अभी समय हो रहा हैं नौ बजकर चौदह मिनिट और आज तारीख हैं पांच अप्रैल दो हजार बाईस । 


~ विनय कुमार झा 

                             


                                      सादर धन्यवाद 

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