कैसे पनपता हैं अंधविश्वास, आज की भूल कल की परंपरा कैसे बन जाती हैं ; सीखिए इस कहानी के माध्यम से : विनय कुमार झा


एक समय की बात है एक घने जंगल में एक तोता रहता था जिस नाम काकू था। कुछ समय बाद काकू का एक परिवार बन जाता है, जो परिवार एक पुराने पीपल के वृक्ष पर रहता था । काकू का जीवन हंसी खुशी व्यतीत हो रहा था ,तभी काकू के घर एक नन्हें तोता का जन्म होता है, उसका नाम सोम रखते हैं। अब काकू का परिवार पहले से अधिक खुशहाल जीवन जीने लगा था। एक दिन नन्हे तोता की मां ,जिसका नाम सती था, सोम से कहती है कि बेटा यह खुला आसमान ही हमारा घर है हमें यही जीवन व्यतीत करना है, हमें आसमान की ऊंचाइयों में उड़ना है और खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करना है।
काकू परिवार खुशी खुशी जीवन व्यतीत ही कर रहा था कि अचानक से नन्हे सोम के जीवन में दुखों का भूचाल आता है नन्हा सोम उड़ रहा था और खेल रहा था, तभी अचानक एक शिकारी जंगल की तरफ़ आता है और वह नन्हे सोम को पकड़ लेता है, उसे पकड़कर पिंजरे में डालता है। फिर बाजार ले जाकर बेच देता है । उस नन्हे सोम को एक धनी परिवार खरीद लेता है और अपने घर ले जाता है वो धनी परिवार उस नन्हे सोम की देखरेख अच्छी तरह से करता है नन्हे सोम के बड़े होने पर वो धनी परिवार एक मादा तोता जिसका नाम सुमी था, खरीद कर लाते हैं और दोनों को एक बड़े पिंजरे में बंद कर देते हैं। 
 कुछ समय बाद पिंजरे में सुमी एक नन्हे तोता को जन्म देती है जिसका नाम वो ईश रखते हैं, धीरे-धीरे ईश बड़ा होता है। एक दिन नन्हे इस की मां (सुमी) ईश से कहती है बेटा यह पिंजरा ही हमारा घर है हमें यही जीवन व्यतीत करना है । 
इस प्रकार उस पिंजरे में उस सोम की कई पीढ़ियां गुजर जाती है और हर पीढ़ी अपने आने वाली पीढ़ी को यही संदेश देती है की यह पिंजरा ही हमारा घर है और हमें यही जीवन व्यतीत करना है । इस प्रकार के जीवन में तोता की पीढ़ियां जमीन पर रेंगने वाली पैदा होती हैं ना कि आसमान में उड़ने वाली । दूसरी तरफ जिन तोता का जन्म वृक्ष की खोल में होता है वह सिर्फ जमीन पर चलने वाली ही नहीं बल्कि आसमान की बुलंदियों को छूने वाली होती थी। 
आज यही हाल हमारा है हमें सामाजिक बंधुओं ने इस कदर से जकड़ा हुआ है कि हमें एक निचले स्तर का जीवन जीने पर मजबूर कर रही। हमारे रहन सहन ,खानपान यहां तक कि हमारी सोच को भी जकड़ा हुआ है। हम यह नहीं करेंगे तो वह नहीं होगा ,वह नहीं करेंगे तो यह नहीं होगा, हमें यह नहीं पहनना चाहिए, हमें वो नहीं खाना चाहिए, हमें यहां/वहां नहीं जाना चाहिए। जबकि इसके विपरीत ऊंचे घराने के लोग जो किसी भी प्रकार के बंधन में नहीं जीते हैं वाकई खुला आसमान उनका घर होता है। आसमान की बुलंदियों में उनकी मंजिल होती है। हमें हमारी सोच बदलना होगा कुरीतियों और अंधविश्वासों से बाहर निकलना होगा। हमें भी बेबुनियादी सामाजिक बंधनों को तोड़ना होगा। तभी सही मायने में हमारी आजादी होगी और यह खुला आसमान हमारा घर होगा।
आज बाबा साहेब डा. अंबेडकर का महापरिनिवार्ण दिवस है, बाबा साहेब ने जीवन पर्यंत हमें अंधकार में जाने से बचाया और उन सभी सामाजिक बंधनों को तोड़ने के लिए कहा जो हमारे प्रगति के मार्ग पर अड़चन बनी हुई थी। आज हम बाबा साहेब के त्याग और बलिदान को हम साकार करेंगे और तमाम उन जंजीरों को काट फेकेंगे जिन्होंने हमारी सोच को जकड़ के रखा है। 
बाबा साहेब अमर रहें....!!!


Story by - Vinay Kumar Jha 

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