2003 में एक फिल्म आई थी जिसका नाम था “गंगाजल” , यह फ़िल्म प्रकाश झा के निर्देशन में बनाई गई थी। इस फिल्म में बिहार के जंगल राज पर प्रकाश डाला गया है।
बिहार की हकीकत और उत्तर प्रदेश के बरेली में कल घटना लगभग एक जैसी है, जहां एक IPS अधिकारी ने अपनी सूझ बूझ से जनता को दंगों की आग में झोंकने से बचाया था।
मगर प्रभाकर चौधरी का मामला यहां कुछ अलग हैं, उन्होंने मात्र आधे घंटे के अंदर शहर को दंगों से बचाया। मगर यह बात नफरत के ठेकेदारों को पसंद ना आई क्योंकि उनकी दाल दंगों की आग से गलती है। इसलिए चार घंटे में ही उनका ट्रांसफर कर दिया गया।
यह जरूरी नही कि कंधे पर कांवड़ रखने वाला शिवभक्त ही होगा, वो अं**भक्त भी हो सकता हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़ कांवड़िये मस्जिद के बाहर से जुलूस निकालना चाहते थे लेकिन स्थानीय आबादी और प्रशासन ने इसका विरोध किया.
जुलूस को लेकर राजनीतिक दबाव इतना अधिक था कि अगर इन्हें नहीं रोका गया होता तो आज मेवात की तरह बरेली भी जल रहा होगा।
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