जो संकट में काम ना आए वो आपका मित्र हो ही नहीं सकता: लेख ~ विनय के शब्दों में


 

मित्रता ~


“जो आपको समझ नहीं सकता वो आपका मित्र नहीं हो सकता। जो संकट में काम नहीं आ सकता वो आपका मित्र हो नहीं सकता”

ये कैसे विद्वान लोगों की बातों पर आप अमल करते हो? जिन्होंने कभी खुद किसी से साथ मित्रता ही नहीं निभाई। क्या ये सारे फर्ज़ और दायित्व आपके मित्र के लिए हैं? आपके लिए नहीं? 

मैं पूछना चाहता हूं कि आपका मित्र निष्ठुर हैं, पापी हैं, कलंकी हैं, बेईमान हैं, झूठा हैं, कमज़ोर है इत्यादि कुछ भी हैं। यदि वो आपका मित्र हैं तो क्या आपने कभी उसे अच्छा बनाने की कोशिश की?

जरूरी नहीं की हर मित्र संकट में साथ दें, क्या पता वो आपसे अधिक बड़े संकट से लड़ रहा हो। वो नहीं चाहता अपने मित्र को तकलीफ़ देना, इसलिए वो अकेले लड़ रहा हैं। 

इधर ये मित्र संकट में है उधर वो संकट में हैं, दोनों एक दूसरे को मतलबी कह देंगे कि वो हमारे संकट में हमारे काम नहीं आया। मगर मिलकर एक दूसरे की मदद नहीं करेंगे। 

रुपयों की परत ने आखों पर पर्दा डाल दिया, रिश्तों का भाव अब किसी को समझ नहीं आता। जिसके पास पैसा है वही लंबे समय तक दोस्ती में टिक पाएगा। 

याद करो दुर्योधन और कर्ण की दोस्ती, महाभारत में इनकी दोस्ती का जिक्र कम किया गया हैं। कर्ण भली भांति परिचित था कि उसका मित्र विनाश की ओर जा रहा हैं। दुर्योधन का साथ देने में उसके कदम कभी नहीं डगमगाएं। 

दोस्ती एक रिश्ता है जो ख़ून के रिश्ते से भी कहीं अधिक महान हैं। बशर्ते इसमें पारदर्शिता होनी चाहिए। ये रिश्ता सभी बंधनों, मोह माया, जाति धर्म, पद गरिमा इत्यादि सभी को ताक पर रखकर सिर्फ़ निभाना जानता है।

मेरी फेसबुक फ्रेंड लिस्ट में चार हज़ार के आसपास मित्र है। कुछ गांव में क्या शहरों में कुल मिलाकर पांच हजार दोस्त होंगे। मगर क्या फ़ायदा इतनी फ़ौज खड़ी करने का? 

जीवन में सिर्फ़ एक दोस्त बनाओ, और वो दोस्त कर्ण की तरह होना चाहिए। आप भी कर्ण बनिए। मित्र के जीवन का प्रत्येक क्षण आपका होना चाहिए। मित्र सांस ले तो धड़कन आपकी चलनी चाहिए। 

मुझे अपने जीवन में हजारों मित्रों की तमन्ना नहीं हैं। मुझे बस एक ऐसा मित्र चाहिए, जो मेरा बिन अधूरा हो, मैं उसके बिन अधूरा रहूं। जैसे राधा, कृष्ण के बिना और कृष्ण, राधा के बिना। 

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