मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव और मेवों की बारिश


 यह तस्वीर सोशल मीडिया पर भटकती हुई मिली, सोचा अपने शब्दकोश के भंडार से इस पर एक दो पंक्तियां लिख दूं। मेरी यह पंक्तियां काल्पनिक होगी, अन्यथा ना लें। इसमें काजू नाम का व्यक्ति मुख्य किरदार में हैं। 


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एक ऐसा गांव जो भारतीय संस्कृति और परंपरा को अपनी गोद में कायम रखें हुए हैं, गांव में अमीरी और गरीबी का कोई फर्क नहीं है। सब एक हैं। गांव वाले कुएं से पानी निकाल कर खेत से धान और गेंहू निकाल कर अपना जीवन यापन कर हैं। 


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यह गांव बाहरी दुनियां से अछूता हैं, इसे खाने के व्यंजनो में भाजी का साक, मक्के, बाजरे और गेहूं की रोटी पसंद हैं। रात के अंधेरे से निजात पाने के लिए गांव वाले मशाल जैसे कुछ आधुनिक उपकरणों का प्रयोग करते हैं। क्योंकि यहां के लोगों ने बिजली के बारे में सिर्फ़ सुना है। 


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काफ़ी समय बीत जाता हैं, देश आज़ाद होता, मध्य प्रदेश राज्य अस्तित्व में आता हैं। इक्कीसवीं सदी का आगाज़ होता हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज सिंह शपथ ग्रहण करते हैं। आदिवासी जीवन को आधुनिकता से जोड़ने का वादा करते हैं। 


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यहां के आदिवासी, सात दशक बीत जाने के बाद आज भी घास पूस के छप्परों में जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं। आज भी आधुनिकता इनसे अछूती है, शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ जैसी आधारभूत सुविधाएं भी इनको नसीब नहीं है।


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विधानसभा चुनाव नज़दीक आ चुके हैं, शिवराज सिंह गांव गांव जाकर लोगों को सांत्वना दे रहे हैं कि इस बार पक्का विकास होगा। इस गांव में शिवराज सिंह एक किसान के यहां ठहरते हैं, जैसे स्वयं लक्ष्मी माता चलकर आईं हो। 


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शिवराज सिंह के आते ही किसानों के घरों में मेवों की बारिश होने लगती हैं, सारा अंधकार बिजली के आने से समाप्त हो जाता हैं। सूखे पड़े कुओं में बिसलरी के पानी बरसात होने लगती हैं। कच्ची सड़के पलक झपकते ही पक्की हो जाती हैं। 


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पूरा गांव खुशी से झूम उठा, नाच गाने होने लगे। यह ख़बर दूर दराज तक फ़ैल गई। इतनी खुशहाली शायद पहले किसी ने अपने जीवन काल में कभी नहीं देखी होगी। गांव में कार्यक्रम समाप्त होता हैं। शिवराज सिंह चले जाते हैं। 


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रात काफ़ी हो चुकी थी, इसलिए सब गांव वाले सो जाते हैं। इतने में ही काजू की आंख खुल जाती हैं, क्योंकि उसकी मां ज़ोर ज़ोर से आवाज़ लगा रहीं थीं कि जा जाकर जल्दी कुएं से दो बल्कि पीने का पानी ले आ, वरना बहुत भीड़ हो जायेगी।

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