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फ़ोटो - Social Media |
ये दो मासूम चेहरे, जिन्होंने अभी तक होश भी नहीं संभाला। ये मासूम इस ज़ालिम दुनियां का शिकार हो गए।
करण, जिसकी उम्र 4 वर्ष और अंकुश, जिसकी उम्र महज़ 5 वर्ष थी। दोनों 17 मार्च को लापता हो गए थे, ये दोनों बच्चें 18 मार्च को मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के एक गार्डन में पानी की टंकी में मृत पाए गए। दोनों सगे भाई थे। बताया जा रहा हैं कि ये दोनों माटुंगा में जोसेफ हाईस्कूल के पीछे महर्षि कर्वे गार्डन में खेल रहे थे। जहां एक पानी की टंकी थी जो पलते प्लास्टिक कवर से ढंकी हुई थी। जबकि अन्य मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उस पानी की टंकी पर कोई ढक्कन नहीं था। जब इन दोनों बच्चों के मामले ने टूल पकड़ा तब बॉम्बे हाईकोर्ट ने मामले को स्वतः संज्ञान में लेते हुए बीएमसी से पूछा "इस शहर में इंसान की जान की कीमत क्या है?"
इन बच्चों की माता का नाम सोनू वाघरी और पिता नाम मनोज वाघरी हैं। ये परिवार मुंबई के वडाला पुल के फुटपाथ पर बनी छोटी सी झुग्गी में रहते थे। जहां एक बस्ती बस गई थी। अभी मामले पर कोई फ़ैसला नहीं आया, यह मामला कोर्ट में लंबित हैं इसी बीच बीएमसी के कर्मचारियों ने इस बस्ती को में बने झोपड़ पट्टियों को गिरा दिया हैं।
वहां गार्डन के पास सभी घरों और मंदिर को गिरा दिया गया हैं, जल्दी जल्दी में गार्डन के चहुं ओर दीवार बना दी गई और उस पानी के टैंक को भी ढंक दिया हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर बीएमसी अपना काम इतनी ही जिम्मेदारी के साथ करती तो यह हादसा नहीं होता। बीएमसी ने अपनी सफाई में कहा कि हमारे पास बजट का अभाव था। तभी मुंबई उच्च न्यायालय ने बीएमसी से पूछा था कि इस शहर में इंसान की जान की कीमत क्या है, क्या बजट की कमी या पैसा ना होने पर सुरक्षा मुहैया में नाकाम माना जा सकता हैं?
एक तरफ़ दोनों बच्चों को खोने का असहनीय दर्द दूसरी तरफ अपनी झुग्गी से भी हाथ धो बैठना। इस वक्त उस परिवार पर क्या बीत रही होगी, इस बात की कल्पना सिर्फ़ वही कर सकते हैं। हालांकि मुंबई उच्च न्यायालय ने सोनू वागरी का पक्ष लेते हुए बीएमसी से कहा कि जिस तरह ट्रेन या नगर निगम की बस में हादसा होने पर मुआवजा दिया जाता हैं, वैसे ही इस हादसे का ज़िम्मेदार बीएमसी को मानते हुए उचित मुआवजा राशि प्रदान की जाए। मृतक बच्चों के मां बाप और रिश्तेदार ने मांग की है कि हम आपसे (सरकार) कुछ भी नहीं चाहते, मगर दोषियों के खिलाफ़ कार्यवाही करें। क्योंकि आज गरीब का बच्चा समझ कर अनदेखा कर दिया तो आगे भविष्य में भी कोई अनहोनी हो सकती हैं।
मैं चाहूंगा कि आप इस घटना को राजनीतिक और धार्मिक नजरिए देखें और सोचें, आज पूरा एक महीना बीत गया अब तक कुछ भी कार्यवाही नहीं हुई। यदि किसी नेता का राजनीतिक एजेंडा सेट हो जाता तो अब तक वह दोनों बच्चों के मृत शरीर के साथ सड़क पर बैठा होता?
यदि कोई धार्मिक संगठन ही अपना एजेंडा सेट करने में सफ़ल हो जाते तो अब मुंबई की सड़कों पर हंगामा हो रहा होता?
मगर अफ़सोस गरीब के बच्चें हैं, इस घटना से किसी की भावनाएं आहत नहीं होंगी।
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