कीमत तेरे थप्पड़ की



इस कदर की बनी स्थिति
कि पढाई न कर पाया मैं,
हुऐ आरमान सारे ख़ाक
जब स्कूल से निकला मैं,
सपने वो सच नहीं होते,
जिन्हें हम बंद आखो में देखले,
सपने वो सच होते हैं
जिन्हें हम जिन्दगी में अपना ले...



यही एक सपना था
उसका कि बड़ा होकर बड़ा आदमी बनूंगा,
एक लड़का जिसका नाम श्याम था 
जो अपने परिवार वालो के साथ गांव में रहता था.
श्याम पड़ने लिखने में होशियार था 
मगर आर्थिक स्थिति कमजोर होने की बजह से उसके सारे अरमान खाक बनकर रह गए थे.
जब फीस स्कूल में समय से न पहुंच तो 
अध्यापक ने स्कूल मे बाहर निकाल दिया।
एक तो घर का गुजारा ठीक से न चल रहा था. ऊपर से मे पढाई ...
श्याम के लिए पढ़ना और भी मुश्किल हो गया था।
एक बार श्याम घर में निकला कि वह दोस्तों के साथ खेलने जा रहा है, 
उतना कहकर श्याम गांव छोड़कर शहर की ओर चल दिया।
रास्ते में किराये के लिए पैसे न थे मीलों का सफर पैदल ही तय किया। 
श्याम पूरी तरह से थका हारा, भूखा-प्यासा गयी बीती रात में शहर पहुँचा, 

रात हो जाने की बजह से उसे नींद आ रही थी
और वह एक बगीचे में सो गया.
अब सुबह तो उसने नल के पास जाकर खुद को तैयार किया
और भूख मिटाने लिए सिर्फ पानी ही पिया. 
तब श्याम ने देखा कि यहां पर तो सब कुछ गांव से अलग है, 
नए नए कपड़े पहने सभी घूम रहे है 
नए नए सारी वस्तु
नए नए साधन आदि सब कुछ गांव से अलग था।
अब श्याम काम की तलास में जाता है, 
और अनपढ़ होने की बजह से पानी के जहाज की फैक्ट्रि मैं झाड़ू-पोछा मारने की नौकरी मिल गई। 
एक तरफ श्याम को नौकरी मिलने की खुशी तो दूसरी और घर परिवार की चिंता |
श्याम रोज काम करता था
और खुश रहा करता था, 
मगर श्याम की खुशी में गम की मौजूदगी महसूस होती थी
जिस हाल में वो काम करता था
कि देखने वाले देखकर मुग्ध हो जाया करते थे, 
श्याम की इस हालत को देखकर फैक्ट्रि मालिक 
कारण जानने के लिए श्याम को कार्यालय में बुलाता है. 
श्याम डर जाता है 
न जानें कौनसी गलती हुई होगी, 
वह डरता हुआ ऑफिस की तरफ गया. 
और कार्यालय के अंदर चला गया. 
कार्यालय में कोई भी नहीं था 
श्याम कार्यालय के कुछ समय खड़ा रहा
 एसी. की ठंडी हवा महसूस कर उसे अपना गांव याद आया और मां की वो बात जो हमेशा याद आती थी 
जब श्याम भूखा होता 
कि श्याम बेटे मेरा सहारा तो सिर्फ़ तू ही है 
आजा खाना खा ले 
देखो तुम न मत कहना, 
यह सोचकर श्याम की आंखे आंसू से भर आती है
और श्याम आंखें बंद करता हैं
और चकरा जाता है,
जाकर सीधा मालिक की कुर्सी के पास गिरता है,
उसे क्या मालूम कि यह कुर्सी किसकी है, 
वह बस कुर्सी को पड़क कर खड़ा होता है 
और थोड़े समय के लिए कुर्सी पर बैठना चाहता है और बैठ जाता। 
तभी अचानक दरवाजा खुलता है, 
और मालिक आता है 
श्याम को कुर्सी पर बैठा देखकर
नफरत की आग में जल कर आग बबूला हो जाता है। 
मालिक श्याम को हाथ पकड़कर झटके से खड़ा करता है 
और खीच कर थप्पड़ मारता है 
क्या मह तेरे बाप की कुर्सी है, 
श्याम कहता  बाप तक मत जाइये, 
नालायक जवान लड़ाता है, 
मालिक इतना कहकर श्याम को उसकी पूरी पगार के साथ फैक्ट्रि से बाहर निकाल देता है। 
श्याम रोता हुआ, 
शहर छोड़कर गांव जाने की ठान होता है 
और कहता है, 
"परदेशियों से तो हमेशा बेवफाई ही मिली " 
श्याम अपने गांव आ जाता है 
और दोबारा से अपनी पढ़ाई करता है 
और आगे की पढ़ाई के लिए गांव के साहूकार को ऋण लेकर शहर आ जाता है,
श्याम अपनी पढ़ाई पूरी करने बाद 
उसे उसी शहर में पुलिस इंस्पेक्ट का पद मिलता । 
और श्याम पूरे परिवार के साथ शहर में रहने लगता है, 
और सारा कर्ज चुका देता है 
जहां तक कि उसे याद था कि मुझ पर कितना कर्ज हैं 
सो वो मारा कर्ज अदा करता है 
मगर उस कर्ज के बारे में भूल जाता है ,
जो उसे इस मंजिल तक लाया | श्याम की इस खुशहाल जिन्दगी में अब कोई गम नहीं रह गया था. 
एक दिन उसी पानी वाले जहाज फैक्ट्री में झगड़ा हो जाता है,
बात पुलिस स्टेशन तक पहुंचती है। 
कंपनी के कर्मचारी मालिक को पोषी ठहरा कर उसकी सजा की मांग करते है, 
जब उस फैक्ट्री मालिक को इंस्पेक्टर के करीब लाया जाता है
तो श्याम उसे पहचान लेता है 
और उसे अपना पुराना कर्ज थप्पड़ भी याद आता, 
श्याम फैक्ट्रि मालिक को अपनी पहचान बताता है, 
फैक्ट्री मालिक श्याम से माफ़ी मांगता है ,
श्याम शर्मिंदा हो जाता है 
और कहता है कि यह सब आपके थप्पड़ की बदोलत है, 
मालिक की आंखो मे आंसु आ जाते हैं 
और कहता है कि आज के बाद वो काम कभी भी नहीं करूगां 
जिससे किसी का दिल टूटे 
बेटे मुझे माफ कर दे 
श्याम उसके चरण छूता है
और आर्शीवाद लेता है, 
और फैक्ट्री मालिक को रिहा कर देता 
और सभी कर्मचारियों (फैक्ट्रि) से कहता है 
कि अब ऐसा भी नहीं होगा
तुम सब भी माफ कर दो, 
सब लोग माफ़ कर देते है, 
और
सभी खुशी-खुशी अपने अपने स्थान पर चले जाते हैं।



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आपका अपना — विनय कुमार झा

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