फ़ोटो : जागरण |
मेरे बचपन की बात है मैंने एक साधु और बिच्छू की कहानी पढ़ी थी , जो इस प्रकार थी कि एक साधु स्नान करने के लिए नदी के तट पर जाते है जैसे ही जल की धारा में वो स्नान करने के लिए उतरते हैं तभी उनकी नजर एक बिच्छू पर पड़ती जो पानी में डूब रहा होता है । साधु उसे देखकर आहत हो जाते है और वो उसे बचाने का प्रयत्न करते जैसे ही अपनी हथेली उसकी ओर बढ़ाते है वैसे बिच्छू उसे उन्हें डंक मार देता है यही क्रम तीन चार बार होता है , मगर साधु उसे आखिर कार बचाता हैं और बचा ही लेता है । ये घटना क्रम पास खड़े एक शिष्य ने देखा , शिष्य ने अपने गुरु को बिच्छू के लिए बचाने से मना किया । जब वो आपको बार बार डंक मार रहा तब भी आप उसे बचाने का प्रयत्न कर रहे हैं । यह बात सुनकर साधु बड़े ही कमाल का जवाब देते हैं । जो जबाव आज भी मेरे जहन में इस प्रकार समाहित है जैसे तन में रूह होती है । उन साधु का जवाब था कि
“ जब वो एक बिच्छू होकर अपना कर्म नहीं त्याग रहा हैं तब में एक साधु होकर अपना कर्म कैसे त्याग दूं ”
यह बात सुनकर शिष्य आश्चर्य चकित रह जाता है और वो अपने गुरु को प्रमाण करता है । और वही शिष्य अपने गुरु की इस लीला का बखान संसार के समक्ष करता हैं ।
जिससे आज ना जाने कितने व्यक्ति प्रभावित होते है ।
जाने अंजाने में ठीक ऐसा ही वाक्या मेरे साथ घटित हुआ । जब सुबह में नहा धोकर बाहर कपड़े सुखाने निकला तो मैंने देखा एक चूहा बहुत बुरी तरह एक कागज से चिपका हुआ है जिस कागज पर किसी ने गोंद गिरा दी थी । चूहा काग़ज़ से कुछ प्रकार चिपका हुआ था की जिसे खुद से निकल पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी था , उस कागज का आकार बड़ा था और कड़क भी था जिससे वो उस कागज को भी नहीं काट सकता था यदि वो काटने का प्रयत्न भी करता तो अपने मुंह को उस गोंद का शिकार बना लेता । मैने देखा जब उसे तो पाया कि ये रात के अंधेरे में यहां आया होगा और तभी वो इस गोंद का शिकार बना । पहले तो मुझे देखकर लगा की किसी ने इसे जहर खिला दिया जिससे ये उस कागज पर पड़ा हुआ है या किसी ने उसी कागज से उठाकर फेंक दिया हो । मगर कुछ देर तक देखने के बाद मुझे पता चला की अगर इसने जहर खाया होता हो अपनी जगह से जरूर हटता या इधर उधर जाता , मगर वो एक ही जगह पड़ा हुआ तड़फ रहा था । मुझसे नहीं देखा गया और मैने झट से अपना हाथ बढ़ाकर कर उसे उस गोंद से निकलना चाहा । मगर हुआ क्या जैसे ही मैने अपना हाथ आगे किया उसे बचाने के लिए और उसके तन को छुआ मगर उसने एक पल गबाएं बिना मुझे इससे पहले कुछ आहट भी होती कि उसने मुझे अंगूठे में काट लिया ।
गोंद लगा हुआ काग़ज़ और वो लकड़ी |
देखते ही देखते अंगूठे से रक्त की धार बहने लगी में हताश पड़ गया । मुझे मुझे गुस्सा भी बहुत आया की इसे अपने पैर तले दबाकर कुचल दूं ।
मगर किसी ने बड़े कमाल की बात कही है
जब भी कभी अंदर का रावण तुम्हारे पवित्र राम जैसे मन पर हावी हो उसे तुरंत अपनी इच्छा शक्ति के बल से नष्ट कर दो ।
और अपने अंदर के राम की सुनो तभी मुझे उस साधु और बिच्छू की कहानी याद आई जो बिल्कुल सत्य है । फिर मैंने उसका अनुसरण किया और उस चूहे हो एक लड़की की सहायता से उस गोंद से बाहर किया । मैं कौन असाधारण साधु या महात्मा तो नहीं हुं में एक साधारण सा मनुष्य हूं ।
मैं एक बार की चोट खाने के उपरांत उसी हाथ में पुनः चोट खाना नहीं चाहता था , उसी हाथ में क्या कहीं भी नहीं चोट खाना चाहता था । मैं क्या कोई भी मनुष्य हो वह भी कभी इस प्रकार चोट खाना नहीं चाहेगा । इसलिए मैंने एक लकड़ी का सहारा लिया । और उसी की मदद से चूहे को उस कठोर गोंद से मुक्ति दिलाई । जिस अंगूठे में चूहे ने काट लिया था मैंने उसी हाथ से चूहे को बचाने का प्रयत्न किया । मेरे रक्त से वह लकड़ी भी भीग गई । मगर मैने अपना कर्म किया । क्योंकि मैं नहीं भूल सकता था की मैं एक मानव हूं ।
यदि चूहे ने अपना कर्म किया तो में एक साधारण मनुष्य होकर कैसे अपना कर्म भूल सकता था । यदि मैने जाने अंजाने में कोई परोपकार किया है तो उसके लिए मैं उस साधु और बिच्छू की कहानी को श्रेय देना चाहता हूं जिसने मुझे परोपकारी बनाया ।
ऐसी घटनाएं हमारे जीवन में आए दिन घटती रहती हैं , मगर मगर हम घटनाओं से अनजान होते है क्योंकि हमने अपने अंदर के रावण को जगाया हुआ है ना कि अपने मन की स्मरण शक्ति के द्वारा राम को । हमारे जीवन में कभी ना कभी हमारी विपरीत सोच के व्यक्तियों से हमारा आमना सामना होता रहता हैं मगर कभी हम अपने अंदर के राम को नहीं पहचान पाते हैं और और क्रोध वश कई अनैतिक कार्य कर बैठते हैं । मगर हमें हमेशा सतर्क रहना चाहिए की जब भी हमारा सामना किसी विपरीत सोच के व्यक्तियों से हो तब हमें उनसे एक साधारण मनुष्य की भांति व्यवहार करना चाहिए । ना कि किसी दानव की तरह । यदि परिस्थितियां हमें महान बनाती हैं और आगे की उन्नति में हमारा साथ देती हैं । हमारे साथ विपरीत सोच वाला व्यक्ति कैसा भी व्यवहार करें मगर हमें एक मानव की गरिमा को जीवित रखनी चाहिए ।
साधु ने बड़ी ही सुंदर बात कही है कि –
“साधू केवल वेष धारण पुरुष नहीं बल्कि साधू तो भाव है”
कहानीकार – विनय कुमार झा
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