ठग यह शब्द जितना नाटा और बोना है उतना ही घटिया और खतरनाक भी है ।

हमारे देश में अक्सर ऐसी घटनाएं घटती रहती हैं , जिनमें व्यक्तियों को कई बार नुकसान उठाना पड़ता है । उन्हीं घटनाओं का एक हिस्सा है ठग यह शब्द जितना नाटा और बोना है उतना ही घटिया और खतरनाक भी है । इसे एक प्रकार की बीमारी भी कह सकते हैं या पैसे कमाने का एक नापाक तरीका । आजकल यह तरीका बड़े-बड़े शहरों से लेकर छोटे-छोटे गांव तक में अपनाए जाते हैं , लोग बाग इतने समझदार हो गए हैं कि वह ठगने में किसी को भी नहीं बकस्ते हैं चाहे वह कोई अपना हो या फिर पराया ही । जहां अपने फायदे की बात होती है वहां लोगबाग किसी को भी ठग सकते हैं । और ठगने का दौर अभी जो चल रहा है ऐसे ही एक घटना सामने आई है जो मेरे गांव के बिल्कुल नजदीक की ही है ठगने का सिलसिला तो हर जगह मौजूद है मगर बात सिर्फ इतनी है कि कोई खुलकर सामने नहीं आ पाती है । यह घटना कुछ इस तरह घटी सरकारी राशन की दुकान पर जो अनाज उपलब्ध होता है गरीबों के लिए वह मुफ्त होता है सरकार गरीबों से मात्र दो या तीन रुपए किलो की दर से अनाज देती है । मगर अधिकांश कोटेदार उसी अनाज में से अपना हिस्सा चुरा लेते हैं , साधारण शब्दों में कहूं गरीबों के हक का खा लेते हैं यह बात सिर्फ राशन या कोटेदार की नहीं है ऐसी बहुत सी घटनाएं सामने आती है जिसमें गांव का प्रधान सचिन ग्राम पंचायत अधिकारी और भी कई अधिकारी वर्ग के व्यक्ति हैं जो किसी ना किसी प्रकार किसान व मजदूरों को ठगते रहते हैं । फिलहाल में जो घटना हमारे गांव के पास में घटी है वह राशन को लेकर घटी है राशन की कालाबाजारी राशन का कम तौलना या प्रति इकाई कम अनाज देना इसी वजह से घटना को अंजाम दिया गया है । और जिसमें मारा पिट्टी भी हुई है शायद मैं कहना चाहूंगा कि वह व्यक्ति इतना समझदार रहा है उसने अपने हक की लड़ाई लड़ी है । बाकी अधिकांश 90% व्यक्तियों को मैं देखता हूं वह चुपचाप उतना अनाज ले लेते हैं जितना उन्हें दिया जा रहा होता है इस विषय में चर्चा भी करना नहीं चाहते यदि कम भी मिलता है तो चुपचाप लेकर चले आते हैं और कहने को यह कहते हैं जो मिला बहुत है बल्कि वह अपने अधिकारों को नहीं समझते हैं उनके बारे में जानते हैं खुद ही अपने हाथों अपने अधिकारों को दबाते हैं । और खुद ही उनका हनन करते हैं ,जब कोई बात सामने आती है तो पीछे खड़े हो जाते हैं । यह लोग साहसी तो होते हैं मगर सिर्फ उन जगहों पर जहां बेवजह ने अपने बल का प्रयोग करना हो लेकिन उन जगहों पर नहीं जहां इन्हें अपने अधिकार मांगना हो । वैसे किसी ने कहा है कि अधिकार मांगे नहीं बल्कि छीने जाते हैं तो यहां छीनने की बात तो बहुत दूर है यहां मांगना भी उचित नहीं समझते और इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए जो गांव के सेठ साहूकार लोग होते हैं वह आसानी से हमें लूटते हैं और ठग हैं । एक व्यक्ति की कमजोरी सामने आ जाने से समस्त वर्ग व समाज के लोगों का फायदा उठाते हैं । हाल ही में घटी घटना में यह सामने आया कि एक व्यक्ति द्वारा किए गए विरोध से समस्त ग्रामीणों को उनके हक का अनाज मिला तो इस बात से यह साबित होता है कि मात्र एक व्यक्ति ही काफी है आवाज उठाने के लिए बाकी सारी आवाम को इंसाफ खुद ब खुद मिल जाता है । मगर कोई वह पहला व्यक्ति बनना नहीं चाहता है। सभी यही चाहते हैं कि सब बोलेंगे तो मैं बोलूंगा जब सभी आगे आएंगे तो मैं आगे आऊंगा इसी के चलते ना कोई आगे आता है ना कोई कुछ बोलता है बेबस मजदूरों की तरह खुद पर अत्याचार करवाते रहते हैं यह कोई नई बात नहीं है । हमारे साथ यह सदियों से यही चला रहा है क्योंकि लूटते भी हम ही आ रहे हैं हमारे लिए हमेशा से धनी व सक्षम वर्ग के व्यक्तियों ने लूटा है और हम से चुपचाप उनका जुर्म सहते आए हैं यदि किसी ने आवाज उठाने की कोशिश भी की है या तो उसकी आवाज दबा दी गई या उसे ही खत्म कर दिया गया । मगर इस वक्त देश की कमान संविधान और कानून के हाथों में है यदि कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाता है तो वह लोगों का नेता व प्रिय बन जाता है और अन्य लोगों को न्याय भी मिलता है मगर इस वक्त जो नेता बने हुए वो किसी मजदूर या शोषित वर्ग से नहीं है बल्कि वे एक धनी परिवार से हैं। इसलिए वह कभी हम गरीबों मजदूरों के हक के लिए नहीं लड़ते हैं जहां उनका फायदा होता है उन्हें अपने वोट बैंक की चिंता होती है तभी वह आगे आते हैं और हमारे लिए न्याय की मांग करते हैं इससे यह साफ होता है जहां उनका फायदा होता है वह वहीं आवाज़ उठाते है । और हम इन्हें अपना भगवान समझ बैठते हैं । मगर हमारे अंदर इतनी शक्ति नहीं है कि हम अपने समाज में से ही एक नेता चुने जो भी शोषित व पीड़ित हो जिसने हमारा दर्द सहा हो जिसे मजदूरों के दर्द का एहसास हो । मुझे लगता है कि यही व्यक्ति शोषित व पीड़ित वर्ग के व्यक्तियों को न्याय दिला सकता है । इतिहास में ऐसा कई बार हुआ है कोई निम्न वर्ग से कोई व्यक्ति उठ कर आया है और उसने न्याय की मांग की है जहां तक जनता ने उसका साथ दिया उसने हमेशा अपने हक की लड़ाई जीती है । और आगे भी यही होता रहेगा बस हमें जरूरत है तो सिर्फ आवाज उठाने की , आवाज उठाने वालों के साथ हमें संघर्ष करना होगा और उन लोगों की आवाज बनना होगा जो हमारे हक के लिए लड़ रहे हैं । हमें कदापि एक ऐसे नेता का संग नहीं देना चाहिए जो घर से सुखी समृद्ध और धनवान है क्योंकि वह हमारे दुख दर्द को कभी नहीं समझ सकता । जिसको हमारे दुख का अंदाजा ना हो वह हमारे दुख दर्द के लिए कैसे लड़ सकता है । किसी ने बड़े कमाल की बात कही है जब तक दर्द अपना ना हो तब तक हमें उसका एहसास नहीं होता। इसीलिए मैं कहना चाहता हूं एक बनो नेक बनो और एक ऐसे व्यक्ति का साथ दो जो आपके हित में सोचें जहां भी अन्याय होता देखें भड़क उठे । कभी अपनी आवाज नहीं दबने दो , हम सभी को बोलने का अधिकार है । भ्रष्टाचार के खिलाफ हो या अन्याय के खिलाफ हो या किसी ठग के खिलाफ हो ,खुलकर आवाज उठाओ । आज अकेले संघर्ष करने के लिए मैदान में उतर कर आगे आओ और कभी डर कर पीछे मत हट जाना । कल के दिन सारी आवाम तुम्हारे पीछे खड़ी होगी । हमें इस घटना से एहसास होता है यदि हम आवाज उठाने में सक्षम है तो हमसे हमारा हक कोई नहीं छीन सकता । मैंने जिस घटना का जिक्र किया वो घटना ललितपुर के तहसील मड़वारा की है , वहां एक ग्रामीण सरकारी राशन की दुकान पर अपना राशन लेने जाता है , मगर हमेशा की तरह कोटेदार इस बार भी कम राशन देता है । जिससे वह व्यक्ति भड़क उठता है । और दोनो पक्षों में मारपीट शुरू हो जाती है । इतने में बाकी ग्रामीण झगड़े को शांत करवाते है । इसी घटना को कोई अपने कैमरे में कैद कर लेता है । पुलिस आती है शांति भंग का केस दर्द करती है और राशन बटना बंद करवा देती है । निश्चय ही इस बात से यह साबित होता है एक गांव में ऐसी घटना होने से अन्य गांव के कोटेदार भी सावधान हो गए होंगे । लेख — विनय कुमार झा

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