मां भारती के वीर जवान सपूत महान् क्रांतिकारी हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसियन के प्रमुख सदस्य राजेंद्र नाथ लाहिड़ी जी की आज 94वीं पुण्य तिथि है , हम आपको सादर नमन करते हैं ।
राजेंद्र नाथ लाहिड़ी जी ने फांसी चढ़ते वक्त कहा था कि मैं मरने नहीं बल्की आजाद होकर में पुनर्जन्म लेने जा रहा था ।
हमारा इतिहास ऐसे ऐसे वीरों से भरा पड़ा था जिन्होंने घर परिवार की चिंता को त्याग कर मां भारती की सेवा में अपने प्राण हस कर न्योछावर कर दिए । आज कहते है आज़ादी गांधी जी के स्वतंत्रता आंदोलनों से आई हैं ।
आज़ादी किसी आंदोलन से आई हो अन्यथा ना आई हो मगर उन सभी वीरों के बलिदान से जरूर आई है । जिन्होंने सिर्फ और सिर्फ भारत की आज़ादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए । यदि एक कड़वा सच कहे तो जो आज़ादी हमारे मत्थे थोपी गई है वो आज़ादी नहीं बल्कि सत्ता को पाने की लालसा थी । क्योंकि हमारे नेता लोगों का वास्तवित आज़ादी से कोई ताल्लुक नहीं था ।
आज़ादी तो ऐसे वीरों का बलिदान है को आज तिरंगा के साथ अपना सिर ऊंचा कर के हमें गौरव की अनुभूति प्रदान कर रहें हैं ।
हमें सिखाया गया आज़ादी सत्य अहिंसा से आई हैं तो फिर ये फांसी पर झूलते वाले नौजवान कौन थे ।
इतना तो तय है कि जब भी आज़ादी लाने वाले क्रांतिकारियों और बलिदानियों की बात कहीं जायेगी तब तब ऐसे वीर नौजवानों का नाम ज़रूर लिया जायेगा ।
आईए हम राजेंद्र नाथ लाहिडी जी के जीवन कुछ प्रेरणा लें ।
29 जून 1901 को जन्म होता हैं और और 17 दिसंबर 1927 को फांसी की सजा दे दी जाती हैं । मात्र 26 वर्ष का जीवन इन्हें भारतीय इतिहास में अमर कर गया । वह 26 वर्ष का जीवन यह साधारण मनुष्य की तरह नहीं जिए बल्कि एक महान् क्रान्तिकारी बनकर जिए । वो महान क्रान्तिकारी जो आज हमारे दिलों में अमर है ।
राजेंद्र जी के लिए देश पर मर मिटने की प्रेरणा उनके पिता जी से मिली क्योंकि आपके पिता जी भी देशभक्ति गतिविधियों में सक्रिय रहते थे । राजेंद्र जी बचपन से होनहार विद्यार्थी थे , इन्होंने अपनी पढ़ाई बनारस से की क्योंकि यह राष्ट्र प्रेम की जोत लिए वाराणसी अपने मामा जी के यहां आ गए थे ।
राजेंद्र की के जीवन की सबसे बड़ी चुनौती थी सरकारी खजाने को लूटना , राम प्रसाद बिस्मिल जी द्वारा बनाए गए कार्यक्रम का जब प्रस्ताव उन्होंने सभी के सामने रखा तो सबसे पहले राजेंद्र जी ने उसे स्वीकार किया ।
और घटना को किसी भी प्रकार से अंजाम देने के लिए तैयार हो गए । ।
उस समय राजेंद्र जी एम ए प्रथम वर्ष के छात्र थे । राजेंद्र जी की यह निर्भीकता उन्हें विरासत में मिली थी । जो आगे चल कर उन्हें देश प्रेम की ओर ले गई ।
ऐसा देश प्रेम जो अपने प्राण न्यौछावर कर देने के लिए पल भर भी नहीं सोचता। ऐसे थे राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ।
अंग्रेजो ने हमें हमेशा चालाकी से मारा है । क्योंकि उन्हें पता था देश में अब क्रांति लहर दौड़ चुकी है , अब और राज कर पाना संभव नहीं है । इसलिए इन्हें निश्चित दिनांक से दो दिन पूर्व ही फांसी पर लटका दिया गया ।
हमें आपके जीवन से बहुत कुछ प्रेरणा मिली है जो हमारे जीवन में हमारे दायित्वों की ओर अग्रसर करेगी । हम जीवन पर्यन्त आपके आभारी रहेंगे और आने वाला वक्त भी आपकी कुरवानियों का गबाह बनेगा जो सदियों तक आपके जीवन से हमें अवगत कराता रहेगा ।
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🙏🙏🙏🌞
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