मुझे अपनो ने बुलाया था ,
अपनो ने ही फसाया था ।
में कल शेर था आज शेर हूं
अगर जिन्दा रहा तो याद रखूंगा
किसी ने दोस्त बनाकर जाल बिछाया था ।
ना ब्राम्हण हूं , ना क्षत्रिय हूं ...
ना वैश्य हूं , ना शूद्र हूं ...!!
मानव मेरा धर्म , राष्ट्र हित मेरा कर्म ,
मैं जमीं से हूं , जमीं मेरा अभिमान हैं....!!
मत कर भेद कि में हिंदू वो मुसलमान है,
यह जाति धर्म कहना छोड़ क्योंकि,
हम सब से मिलकर बना यह हिंदुस्तान है....!!!
महज चन्द दिनों का अरसा हुआ करता हैं
जब ऐ दिल इश्क़ और बेचेनियों से भरा रहता हैं
मुहब्बत का हर ख्वाब आईने सा बिखर जाता है
फिर हाथों में कलम और दिल में बेइंतहा दर्द रहता हैं ।।
तुम अ लिखो हम ज्ञ लिखेंगे
तुम कहानी लिखो हम इतिहास लिखेंगे ।।
तुम जाति धर्म लिखना,
हम हिंदुस्तान लिखेंगे ।।
हौसले खड़े हैं हमारे मुश्किलों के आगे ,
तुम सिर्फ़ रस्ता लिखना
हम अपनी क़िस्मत में मुकाम लिखेंगे ।।
हवा के झोंके से बुझ जाएं में वो दीप नही
बाजार में बिक जाएं जो में वो सीप नहीं ,
लाखों दुआओं में मांगा है मुझे मेरी मां ने
बिन मंज़िल पाएं रुक जाऊं में वो कुलदीप नहीं ।।
मैं कोंतेय नहीं राधेय हूं
सूत पुत्र नहीं सूर्य पुत्र हूं ,
मैं अर्जुन भी मैं कृष्ण भी ,
मैं महराज नहीं दानवीर हूं ।।
नेत्रों में अश्रु लाया लाया अंजुलि में पुष्प
दिल में भावनाएं उमड़ी देख तेरा सौंदर्य रूप
जिव्हा कांप पर रही है क्या मांगू वर
सुख की छाया मांगी मिली हरदम दुख की धूप
दर दर भटक रहा हूं
मंजिल की खोज में हूं
मंज़िल मुझे मिलेगी
हर पल यही सोच में हूं ।।
– विनय कुमार झा
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