बुरा ना मानो होली है : हमारी होली आज की

 हमारी होली : आज की 

अभी तक खैरियत में हैं ।

आज होली का त्यौहार है हर तरफ खुशियां ही खुशियां नजर आ रही हैं ,कोई लाल पीला नजर आ रहा है किसी के हाथ में पिचकारी तो किसी के हाथों में रंग के फव्वारे नजर आ रहे हैं कोई चेहरे से एकदम लाल हो रहा है तो कोई काला । सड़कों पर तरह-तरह के रंग बिखरे पड़े हैं । आज का हर्ष और उल्लास देखकर मानो यूं लगता है जैसे जीवन में एक नई क्रांति सी आ गई हो जैसे आजादी सी मिल गई हो । हर तरफ खुशियां , खुशियां ही खुशियां नजर आ रही हैं । होली में कहीं झड़प तो कहीं गले मिलते देखा जा रहा है आज कहीं दूर दूर तक भी कोई सन्नाटा नजर नहीं आ रहा है हर तरफ शोर ही शोर है मानो यह बच्चों की टोली ऐसे लग रही है जैसे यह हमें पकड़ कर कैद करने के लिए आई हो , आवाजे यूं आ रही हैं पकड़ो पकड़ो । 

अब कहीं बचना भी मुश्किल जान पड़ रहा हैं । मन यूं कर रहा है कि जैसे मैं भी किसी रंग में रंग जाऊं और इन बच्चों की टोली में शामिल हो जाऊं, इन्हें देख कर मुझे अपना बचपन याद आ रहा है हम कैसे हाथों में रंग लिए दौड़ा करते थे एक दूसरे के पीछे रंग लगाने के लिए कोई इधर भागता तो कोई उधर भागता आखिर हम उसे पकड़ कर रंग लगा ही देते ,कभी-कभी तो हमारा झगड़ा भी हो जाता मगर होली में एक बहुत पुरानी कहावत है बुरा ना मानो होली है हम इसी कहावत को बार-बार दोहराते और होली का मजा लेते हमारी टोली एक के बाद एक बढ़ती ही चली जाती है और होली का मजा दुगना होता चला जाता । यूं तो हमारे दिलों में कई प्रकार के मलाल होते हैं लेकिन जब कोई हमारे दरवाजे तक चल के आता है तो लगता हैं क्यों ना अब हम भी इन्हीं रंगो में रंग जाए । वैसे रंग से किसी को लाल पीला होना भले ही पसंद ना हो मग


र जब बारी अपनो की आती हैं तब मजबूरन हमें रंगमय होना पड़ता है ।

एक बहुत ही सुन्दर वाक्या में आपके साथ साझा कर रहा हूं जो अक्सर आपके साथ भी होता हैं जैसे ही मैने अपने एक मित्र को रंग लगाने के लिए रंग तैयार किया वो दौड़कर अपने घर में घुस गया । हम कुछ समय तक बड़े बैचेन रहे और उसका इंतजार करते रहें मगर वो घर से बाहर नहीं आया । फिर हम अपनी सतर्क की मुद्रा से बाहर गए , जैसे ही उसने हमे कहीं से देखा कि ये लोग अब सामान्य हो गए ना जाने कहां से आया और एक बाल्टी रंग विशुद्ध लाल हमारे ऊपर उड़ेल दिया , देखते ही देखते सारी सड़क एक दम लाल लाल हो गई चारो ओर सिर्फ एक ही रंग दिख रहा हैं और मेरे चेहरे पर मायूसी । जैसे वो लाल रंग मुझे चिड़ा रहा हो । मेरे मित्र भी मेरे ऊपर जोर जोर से हस रहे थे । सड़क पर फैला वो रंग मानो ऐसे प्रतीत हो रहा था जैसे घनघोर अंधेरे में सूरज ने अपनी लालिमा बिखेर दी हो । 


मैं चल रहा हूं जैसे तमाम शहर की खामोशी भी मेरे साथ चल रही हो ये गलियां ये मोड़ ये कच्चे घर जैसे मुझे चिड़ा रहें हो । मेरे दरवाजे के सामने लगे वृक्ष भी जैसे मुझसे कुछ कहना चाह रहे हो । मगर में चलता ही जा रहा हूं इन सब को किनारे करते हुए । 

फिर ना जाने कहां से मेरे अंदर एक अजीब सी हर्ष उल्लास महसूस होती हैं जैसे मैं कुछ दूरी चलकर अपने बचपन में आ गया हूं । मैं पूरी तरह से अपनी युवा अवस्था को भूल चुका था । तभी मैंने अपने एक मित्र को नहाते देखा और पीछे से जाकर सूखे लाल रंग की पुड़िया उसके सिर पर खोल दी , और वह देखते ही देखते लाल रंग से पूरी तरह रंग गया । अब उसका कैसा हाल है हमें नहीं पता अब हम बहुत आगे निकल आए हैं ।

खैर अभी तक मेरा मुंह लाल नहीं हुआ , जबकि कपड़ो पर थोड़ा बहुत रंग लग गया है ।


हम कुछ दूरी आगे चलकर अपने ही एक मित्र के दरवाजे के सामने बने चबूतरे पर बैठ कर सुस्ता रहे थे। तभी अचानक से तीन और मित्र आते हैं , कहते हैं पकड़ो पकड़ो और रंग लगाओ । मगर मुझे उनकी बातों पर यकीन नहीं होता हैं कि सच में ये रंग लगाने आए क्योंकि वो पूरे तरह रंगे हुए थे मगर उनके पास रंग नहीं था। इसलिए मैं अपनी जगह बैठा रहा । मगर कुछ ही देर में जो होने वाला था उसका अंदाजा मुझे बिल्कुल भी नहीं था । उन्हीं तीनों में से एक ने मुझे पीछे से पकड़ लिया और चिल्लाने लगा । मैं बाकई इस बात से अंजान था कि ये मुझे ही रंग लगाने आए , और ये तीन नही तकरीबन आठ या दस मित्र थे । जिसमें से तीन पहले आए मुझे पकड़ने के इरादे से ताकि में भाग ना पाऊं । फिर जैसे ही मुझे पकड़ा और उन्हों बाकी टोली को भी बुलाया । तभी एक साथ आकर सभी ने मुझे दबोच लिया और खूब रगड़ रगड़ कर रंग लगाया । मैं खूब उनके हाथों से छूटने की कोशिश की मगर में नाकामयाब रहा । और आखिर में हम सभी रंगा रंग हो गए । 

मुझे रंग लग जाने के बाद मैं फिर कौनसा चुप बैठने वाला था , मैने भी फिर रंग की कुछ पुड़िया खरीदी और अपने मित्र कृपाल के लिए कॉल किया । उसने आने का वादा किया मगर शर्त भी रख दी कि मुझे रंग मत लगाना ।

अब भला कहीं ऐसा होता हैं कि होली का दिन हो और आप रंग लगाने से बच निकले । 

जहां मुझे मेरे दोस्तों ने रंग लगाया वो जगह दीपक का चबूतरा था । अब हम वहां से उठ खड़े हुए और आगे चलने की फिराक में थे तभी हमारे एक मित्र नाम हैं केहर मगरा जो अपनी बाइक से किसी जरूरी काम से निकले थे वो हमें टकरा जाते हैं , हम सब मिलकर उन्हें घेर लेते हैं और खूब मल मल कर रंग लगाते हैं । मत पूछो वो खुशी का आलम जब हम लाल लाल बंदर मिलकर किसी को लाल बंदर बनाते हैं । मानो ऐसा लगता हैं कि हमने किसी कयामत को जीत लिया हो । 

अब हम सिर्फ तीन ही लोग बचे थे मैं महेंद्र और हरिओम , बाकी मित्रगण कहीं निकल गए थे , कहां गए वो ये हम नहीं जान पाए थे । इसलिए हम अंजनी माता के मंदिर की ओर गए । सिर्फ एक दोस्त को रंग लगाने जिसका नाम था दीपक । मगर हमारा दुर्भाग्य वो सारे दिन हमें नहीं मिला । हमनें दीपक की कसर को पूरा करने के लिए वहीं मंदिर पर नहाते एक व्यक्ति को रंग लगा दिया जो महेंद्र के पहचान में थे । खैर अब हम मंदिर से निकल आए और प्रतीक्षालय पर जाकर रुके । वहां भी तीन मित्रो से मुलाकात हो गई , कालीचरण , मोनू और आशीष ये तीनों पहले से ही रंगे हुए थे । इसलिए हमने इन्हे रंग नहीं लगाया । बल्कि एक समूह फोटो लेकर वहां से घर की ओर निकल गए ।

हम घर के आधे रास्ते में पहुंचे ही थे कि एक ओर घनिष्ठ मित्र से मुलाकात हो गई जिसका नाम कृपाल था । उसे हमने फोन करके बुलाया । जबकि हमारी बीच बीच में बात हो रही थी की हम कहां हैं । 

फिर हम तीनों ने मिलकर उसे ऐसे रंग लगाया जैसे शादी में लड़के को उसकी भाभी हल्दी लगाती हैं । कसम से मजा आ गया । अब हम तीन से चार हो गए । हमारी टोली में एक और मित्र का इजाफा हो गया ।

हमारे गांव में एक जगह है जिसे टेड़ के नाम से जानते हैं , हमने वहां रुककर एक अंकित नाम के लड़के को रंग लगाया । तभी वहां से एक टैक्सी निकली जिसमें हमारे परिचय के उस्ताद थे । हमने रंग लगाने में उन्हें भी नहीं छोड़ा । सच कहूं तो हमने उन्हें भी बंदर बना दिया था । 

अब चलते हैं हम घर की ओर रास्ते में हमें हमारे मित्रो की एक और टोली से सामना होता हैं जो डीजे के साथ रंग गुलाल उड़ाकर होली मना रहे थे । हम लोग कुछ समय इस टोली में शामिल रहें मगर वो आनंद नहीं आया जो हमें पहले आ रहा था , इसलिए हमने वो टोली छोड़ दी । और घर की ओर आ गए ।

अब सिर्फ दो मित्र और बचे थे रंग लगाने के लिए जिसमे से अंकित को रंग लगाने के लिए बड़ी मसस्कत करनी पड़ी । खूब परेशान किया । कभी इधर भाग गया तो कभी उधर भाग गया । मगर हमने उसे धर दबोचा । और उसे भी बंदर बना कर । कसम से फिर बड़ा मजा आया । 

बस अब बाकी था अभिषेक को रंग लगाना शाला घुस गए हम उसके घर में और चढ़ गए उसके सीने पर फिर पकड़ कर लगा दिया हमने भी उसे रंग ।

 

आखिर हमारी मेहनत रंग लाई । 

किसी को बंदर तो किसी को बंदरिया बनाई ।।


अब शायद मन भर चुका था इसलिए अब और होली खेलने का मन भी नहीं कर रहा था । ऐसा नहीं था कि गांव में मित्र और नहीं थे । इतने थे पूरा दिन गुजर जाता । फिर भी सभी को रंग नहीं लगा पाते । 

अब हम को भूख भी सताने लगी थी । इसलिए अब हम सभी अपने अपने घर की ओर चल दिए । 


तो फिर अब हम कहते है होली को अलविदा ।

चलो अगले साल फिर मिलते हैं ।।। 


~ लेख विनय कुमार झा 

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