आपातकाल के 48 वर्ष और आज की स्तिथि

 

आपातकाल:

Photo - Dainik Bhaskar 

आज भारत में लागू हुए आपातकाल के लिए पूरे 48 वर्ष हो चुके हैं। मगर आज भी भारत के सीने पर वो ज़ख्म देखे जा सकते हैं। भारतीयों पर आपातकाल का असर इस क़दर हुआ कि आज़ादी के बाद पहली बार केंद्र से  जनता ने कांग्रेस को उखाड़ फेंका था। जनता पार्टी एवम् गठबंधन की एक जुटता में मोरारजी देसाई को 24 मार्च 1977 को देश का चौथा प्रधानमंत्री चुना गया। देसाई कांग्रेस के कद्दावर नेता और स्वतंत्रता सेनानी भी थे।आपातकाल के दौरान उन्हें दो वर्ष का कारावास मिला था, जिसके बाद उन्होंने जनता पार्टी के साथ जाना बेहतर समझा था। कुछ वैचारिक मतभेद हो जाने के कारण उन्होंने इंदिरा गांधी को ‘गूंगी गुड़िया’ का नाम दिया था।

(मोरारजी देसाई के जीवन से जुड़ी दो खास बातें पहली, कि उनका जन्मदिन/दिवस चार वर्ष में एक बार मनाया जाता हैं। क्योंकि उनका जन्म लीप वर्ष यानि 29/02/1896 को हुआ था। दूसरी खास बात यह है कि वो एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा गया)

हालांकि जनता पार्टी के गठबंधन वाली सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चली।जल्द ही अन्य पार्टियों के नेताओं में आपसी मतभेद हो गया और जिस कारण देसाई समर्थित सरकार विश्वासमत हासिल नहीं कर पाई और मात्र अठारह महीने बाद 28 जुलाई 1979 को देसाई ने इस्तीफ़ा दे दिया। देसाई ने इस्तीफ़ा ज़रूर दे दिया गठबंधन टूट भी गया मगर कांग्रेस की जड़े हिला दी। जो खुद ही पक्ष और खुद ही विपक्ष हुआ करती हैं। कांग्रेस पार्टी में भारतीय लोगों की गज़ब की आस्था था, गांधी नेहरू और पटेल की इस पार्टी पर हर कोई आंख बंद करके भरोसा करता था मगर आपातकाल ने भारतीयों की आंखें खोल दीं। जिन राज्यों में कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाती थी उन राज्यों में 1977 के आम चुनावों में एक एक सीट मिली। इसके बाद से हुए आम चुनावों में कांग्रेस को अपने दम पर सरकार बनाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन हो गया था।  आपातकाल के भयंकर विष को पीकर जो नेता निकले उन्होंने कांग्रेस के प्रभुत्व और अस्तित्व को चुनौती दे डाली। कांग्रेस के लिए यह चुनौतियां इतनी महंगी पड़ी कि आपातकाल के बाद से कांग्रेस कभी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर सकीं। 

आपातकाल से भारतीय राजनीति में अमूल चूक परिवर्तन हुए, क्षेत्रीय पार्टियों का उदय हुआ साथ ही पिछड़े वर्ग की ओर ध्यान आकर्षित होना शुरू हुआ। 


इससे क्या सीख मिलती हैं....सत्तारूढ़ पार्टी कितनी ही शक्तिशाली क्यों न हो उसका अंत सुनिश्चित होता हैं। 



Source - Drishti IAS

Article - Vinay Kumar Jha

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