हे राम : प्रखर श्रीवास्तव

Twitter - Prakhar Shreevast 


 एनसीआरईटी ने जब से गांधी हत्याकांड पर आरएसएस को बदनाम करने वाली पंक्तियां हटाई हैं, तब कई कांग्रेस के नेता ट्विटर पर विचारों की उल्टी कर रहे हैं। उन्हें इन सवालों और तथ्यों पर जवाब देने चाहिएं


1. सरदार पटेल ने 27 फरवरी, 1948 को नेहरू को एक पत्र में लिखा था कि मैं करीब-करीब रोज बापू की हत्या के मामले में चल रही जांच पर व्यक्तिगत तौर पर नजर रख रहा हूं। इसमें कोई शक नहीं कि आरएसएस का इस हत्याकांड से कोई संबंध नहीं है। कई सूचनाएं हमें गुमनाम सूत्रों से प्राप्त होती हैं। जिनकी जांच होने पर उनमें से 90 फीसदी झूठी पाई जाती हैं। हम जब गुमनाम सूचनाओं पर संघ वालों को पकड़ते है तो केन्द्र तथा राज्य सरकारों पर आरोप लगता है कि हम निर्दोष लोगों को जेलों में ठूंस रहे है। मैं इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि बापू की हत्या का षड्यंत्र उतना व्यापक नहीं था जितना कि माना जा रहा है, यह सिर्फ चंद मुट्ठी भर लोगों का काम है।” (स्रोत - सरदार पटेल: चुना हुआ पत्र व्यवहार, खंड 2, पृष्ठ 294 )


2. संघ से सरदार पटेल को इतनी ही दिक्कत थी तो फिर उनकी मौजूदगी में 10 अक्टूबर, 1949 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने यह प्रस्ताव पारित क्यों किया कि संघ के स्वयंसेवक कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं? वो भी गांधी की हत्या के दो साल के भीतर। हालांकि बाद में ये प्रस्ताव नेहरू के विरोधी की वजह से वापस ले लिया गया।


3. सरादर पटेल के पर्सनल सेकैट्री और आईसीएस अधिकारी वी. शंकर ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि - “सरदार पटेल हमेशा हिंदू समाज के उत्थान और पुनर्गठन में विश्वास करते थे। वह महसूस करते थे कि हिंदू समाज में संगठन और अनुशासन की कमी है। हिंदुओं पर ये दाग है कि वह दूसरे समुदायों के बदमाशों से अपनी सुरक्षा करने में कमजोर है। सरदार पटेल का मानना था कि यदि हिंदू अच्छी तरह से संगठित और अनुशासित होते हैं तो उनपर आक्रमण बंद हो जाएंगे। इस तरह, हिंदू अन्य समुदायों के उग्रवाद की तेज धार को कुंद कर देंगे, चाहे वे मुस्लिम हों या कोई और। सरदार पटेल की नजर में आरएसएस इस अवधारणा में फिट होता था और इसीलिए उनकी आरएसएस के साथ सहानुभूति और समर्थन था।” यानी साफ है कि सरदार पटेल संघ को समर्थन देते थे और सहानुभूति रखते थे। है कोई जवाब आपके पास?


4. गांधी हत्याकांड की जांच के लिये कांग्रेस सरकार ने 1964 में कपूर आयोग का गठन किया, उसमें गवाही देते हुए गांधी की हत्या के समय देश के गृह सचिव आर.एन. बनर्जी ने कहा था, - “यह साबित नहीं हुआ है कि अपराधी (गोडसे और अन्य) आरएसएस के सदस्य थे। हालांकि आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन इसका यह मतलब नहीं था कि सरकार ने यह मान लिया था कि गांधी की हत्या आरएसएस के सदस्यों द्वारा की गई थी। सुबूतों से पता चलता है कि आरएसएस इस तरह की साजिश या हत्या के लिए जिम्मेदार नहीं था।”


5. कपूर कमीशन ने अपनी जांच रिपोर्ट में साफ शब्दों में दर्ज किया है, “आरएसएस का रुख गांधीवाद के खिलाफ था, लेकिन उसका यह विरोध महात्मा गांधी को व्यक्तिगत रूप से नुक्सान पहुंचाने की हद तक नहीं गया।” कांग्रेस के नेता क्या कपूर कमीशन की रिपोर्ट नहीं मानते हैं?


6. अब सवाल है कि गांधी की हत्या के बाद नेहरू पूरे 16 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे, उनके दिमाग में आरएसएस के लिए नफरत कूट-कूट कर भरी थी। 1950 में सरदार पटेल की मौत के बाद, उन्हें कोई रोकने वाला भी नहीं था। फिर भी उन्होंने कभी गांधी हत्याकांड में आरएसएस की तथाकथित भूमिका के खिलाफ कोई जांच या आयोग का गठन क्यों नहीं किया? असल में, नेहरू अच्छी तरह जानते थे कि वह और उनकी सरकार आरएसएस के खिलाफ सुबूत नहीं जुटा पाएंगे। अगर कहीं जरा भी गुंजाइश होती तो आरएसएस को अपना दुश्मन नंबर 1 समझने वाले नेहरू यह मौका कभी नहीं छोड़ते।


7. नेहरू ही नहीं, उनके बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की सरकार ने भी कभी यह कोशिश करने की हिम्मत क्यों नहीं दिखाई?


8. सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस के.टी. थॉमस ने करारा जवाब देते हुए कहा था, - “RSS पर जांच के शुरुआती चरण में संदेह किया गया था, लेकिन यह जांच आखिरकार इस नतीजे पर पहुंची कि महात्मा गांधी की हत्या में RSS की किसी भी स्तर पर कोई भागीदारी नहीं थी। जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल, दोनों ने बाद में यह महसूस किया कि RSS इस साजिश में शामिल नहीं है। लेकिन राजनैतिक कारणों से आज भी चारों ओर भड़काऊ प्रचार किया जाता है। इस विषय पर ढेर सारा अध्ययन करने के बाद मेरा भी यह मानना है कि एक संगठन के रूप में RSS का गांधी की हत्या से कोई लेना-देना नहीं था।”


- Prakhar Shreevast Ki Twitter Vall Se....!!!

Post a Comment

0 Comments

Close Menu