मेरी ताजमहल यात्रा

आगरा सेना भर्ती रैली का व्याख्यान, 

उसी का शेष भाग...


फिर हमने ताजमहल जाने के लिए किसी टैक्सी तलाश की, तभी एक टैक्सी वाला आया और उसी चौराहे पर खड़ा होकर चिल्लाने लगा, ताजमहल....ताजमहल.... तब हमने टैक्सी वाले को बुलाया और ताजमहल की ओर चल दिए, जैसे जैसे हम ताजमहल के करीब आते गए, वैसे वैसे ही हमारा हर्ष और उल्लास बढ़ता गया। दौड़ के दौरान मिली ना कामयाबी की उदासी धीरे-धीरे घने काले बादलों की तरह छटने लगी । ताजमहल के दीदार की उत्सुकता और भी तीव्र हो गई। हम ताजमहल पहुंच गए, हमने टैक्सी वाले को किराया दिया। फिर हमने ताजमहल के मुख्य दरवाजे से प्रवेश किया और अंदर गए। हमने चारों तरफ नजर घुमाई मगर कहीं ताजमहल नजर नहीं आया। ताजमहल को देखने के लिए हमारे मन में और भी तीव्र जिज्ञासा हुई। तभी हमें रास्तों में बग्गी नजर आई जिस पर बच्चे बैठकर ताज की ओर जा रहे थे। हमें भी बैठने की इच्छा हुई मगर हम नहीं बैठे क्योंकि हमें अपने और भी अन्य मित्रों को भी खोजना था। हम दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें एक तो मित्रों को खोजना और दूसरा ताजमहल को देखने की इच्छा। यही सोचते सोचते हम आगे बड़े, तभी अचानक हमारी नज़र एक वृक्ष पर पड़ती हैं, जहां हमारे सारे मित्र वृक्ष की छांव में बैठे नजर आए। तभी हमारी सारी चिंताएं समाप्त हो गई। तब हम उनके पास गए, सब लोग अपना अपना हाल जताने लगे कि किसने क्या किया! सब ने अपने अपने मन की भड़ास निकालने दी। अपने दिल का बोझ हल्का किया। तब जाकर हमें मालूम हुआ हमारे गांव से 12 लड़के आगरा आए थे लेकिन इन 12 में से कोई ऐसा शूरवीर नहीं निकला जो दौड़ पूरी कर सके। तभी एक अन्य मित्र ने कहा कि चलो छोड़ो ये सब बातें जो हुआ अच्छा हुआ अगली बार कुछ नया करेंगे। अभी हम ताज देखने चलते हैं। जिसके लिए हम यहां आए हैं। तब हम सब ने जी भर के पानी पिया और अपने-अपने बैग को लॉकर रूम में जमा किया और उसकी पर्ची ली। सभी ताजमहल की ओर बढ़ गए। हम सब ने ताजमहल को देखने के लिए टिकट कटाई जिसका मूल्य ₹20 था। तब हम सब लाइन में लग गए। धीरे-धीरे लाइन आगे बढ़ती गई जो ताजमहल के लिए जा रही थी। तो हम सब भी धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए। तभी हमने देखा कि कुछ लोग जो हमारे देश के नहीं हैं, कोई एकदम काला तो कोई एक दम भूरा था। उनके लिए लाइन में लगने की कोई जरूरत नहीं थी बल्कि वह लोग सीधे ताजमहल के अन्य दरवाजे से प्रवेश कर रहे थे। तब मैंने सोचा कि ऐसा क्यों? हम क्यों नहीं जा सकते? अगर हम लाइन में रहते हैं तो कम से कम 1 घंटे का समय लगेगा क्योंकि इस लाइन में कम से कम 50 लोग खड़े हैं। जो ताजमहल के दीदार की प्रतीक्षा कर रहे थे। तब हमने लाइन को तोड़ा, और ताज के नियमों का उलंघन किया। ताज के दूसरे प्रवेश द्वार से टिकट चेक करवाते हुए हम अंदर हो गए हम लोगों से किसी ने कुछ नहीं कहा इसलिए थोड़ा खुश थे। हम लोगों की चेकिंग एक विशेष मशीन द्वारा की गई जिस पर खड़े होकर सारे बदन की चेकिंग होती है बस इस चेकिंग के उपरांत हम आजाद थे, ताज के दीदार के लिए। अब कोई बाधा नहीं थी, यहीं से हम सब अलग-अलग हो गए। जिसे जो देखने में पसंद आया वो उसी तरफ चला गया। कुछ दूरी पर पैदल चलने के उपरांत हमें ताज के तीसरे दरवाजे से गुजरना पड़ा। जैसे ही हमने ताजमहल के तीसरे द्वार में प्रवेश किया हमारी आंखों के सामने एक सुंदर सा विचित्र आश्चर्य दृश्य सामने आया। जिसे देख हमारी आंखें खुली की खुली रह गई। आज तक जिस चीज को हम केवल तस्वीरों या फिल्मों में देखते आ रहे थे। वह चीज अचानक हमारे सामने आ गई जिस देखने के लिए हजारों की संख्या में देश-विदेश से लोग आए हुए थे। जब हमने ताज को जी भर के निहारा, तब हमें ताज के और करीब जाने की इच्छा हुई। हमने ताज के साथ एक एक फोटो खिंचवाई, फिर ताजमहल को करीब से देखने के लिए और पास चले गए। जैसे-जैसे ताज के करीब जाते गए वैसे वैसे ताज की शोभा बढ़ती हुई। ताज की शोभा उस वक्त इस प्रकार लग रही थी कि मानो स्वयं विष्णु गरुड पर सवार होकर इस चमचमाती धूप में धरती पर उतर रहे हो। ताज के उस वक्त की शोभा का वर्णन शब्दों में करना नामुमकिन है। ताज की सुंदरता के साथ-साथ ताज के आसपास का वातावरण ऐसे प्रतीत हो रहा था कि मानो धरती का स्वर्ग यही पर हो। हमने इस दोपहर की तेज धूप में ताज के हर एक कोने कोने से उसका दीदार किया। हम लोग तेज धूप होने के कारण ताज के अंदर कम समय तक ही ठहर सके, क्योंकि अब हमें ताज के अंदर प्यार सताने लगी थी। हम सभी ने एक-एक करके हर छोटी बड़ी इमारत हर एक पेड़ पौधों को बड़ी विचित्रता के साथ देखा। शायद हमें मालूम नहीं था कि हमने सबसे अधिक किस का दीदार किया। क्योंकि ताज के अंदर विदेशियों को देखकर हमारा मन ही नहीं ऊब रहा था। उनके बातें करने का वो रोचक अंदाज उनकी वह मनमोहक अदाएं। जब भी कोई विदेशी हमारे पास से गुजरता था तो हम अपना ध्यान ताज से हटाकर उन्हें निहारने में लगा देते थे। ना जाने इन लोगों में ऐसा क्या था। चलते चलते फिर हमने पानी की तलाश की और हमें पानी पीने योग्य मिल गया। यहां कोई माली पोधों को पानी सींच रहा था वही हम सब ने पानी पिया। और ताज के पीछे वाले दरवाजे से होकर बाहर निकल आए। हम सब ने अपनी अपनी फोटो पैसे देकर स्टूडियों से ली । अब हमने आगरा का सुप्रसिद्ध पेठा खरीदा। इसके बाद घर जाने की तैयारी करने लगे। हम सब मिलकर आगरा स्टेशन पहुंचे यहां सारे मित्र एकत्रित हो गए। जिनमें से कुछ मित्रों ने मथुरा जाने के लिए टिकट ली मगर कुछ मित्रों ने घर जाने की टिकट ली। उन्होंने मुझसे मथुरा चलने के लिए बोला। मगर मन हल्का होने के कारण मथुरा जाने की इच्छा प्रकट नहीं हुई। मैंने भी गांव का टिकट ले लिया। जबकि मुझे मालूम था कि कल श्री कृष्ण जन्माष्टमी है, कभी-कभी ऐसा होता है कि दिल को दिमाग के आगे हारना पड़ता है हम सभी ने गांव की ट्रेन पकड़ी और घर की तरफ चल दिए। बाकी लोग मथुरा चले गए। तत्पश्चात मेरी इच्छा और यात्रा दोनों समाप्त हुई।

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