पिथौरागढ़ में मजदूर की 500 और मिस्त्री की ₹700 दिहाड़ी तय

 

उत्तराखंड राज्य का एक खुबसूरत शहर, जिसका नाम पिथौरागढ़ हैं। आइए पिथौरागढ़ की इस खबर का विश्लेषण करते हैं। 

इस संसार में जहां कहीं भी क्रांति की शुरुवात हुई हैं, सबसे पहले शोषित, पीड़ित, वंचित, और सताए हुए लोगों ने की। देश आज़ाद हुए 75 वर्ष बीत चुके हैं, आज़ादी का अमृत काल भी प्रारंभ हो गया हैं। मगर आज भी मजदूरों की स्तिथि में सुधार नहीं आया।

देश की 80 प्रतिशत जनता किसानी और मजदूरी पर आश्रित हैं, कहीं कोई त्रासदी घटती हैं तब यही वर्ग काल का भोजन बनता हैं। इस वर्ग की स्तिथि में सुधार लाने हेतु केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा, नरेगा जैसी तमाम योजनाएं चलाई गई। मजदूरों को दूसरों शहरों पर आश्रित ना रहना पड़े इसके लिए उन्हें नजदीकी काम दिलवाने के लिए सरकारों ने असीमित धनराशि खर्च की। तब भी कोई सुधार नहीं आया। आज एक सामान्य मजदूर को 250 रुपए  मजदूरी मिलती हैं। और मिस्त्री के लिए 500 रुपए। पिथौरागढ़ में मजदूरों ने दिहाड़ी मजदूरी को लेकर सवाल करना शुरू किया तो उन्हें जवाब देने के लिए प्रशासन को आगे आना पड़ा। और उनकी मांगों के अनुसार उनकी दिहाड़ी मजदूरी तय की गई। 

चुपचाप सबकुछ सहन करने से या ऊपरवाले के भरोसे बैठे रहने से कुछ नहीं होने वाला, हमेशा निराशा ही हाथ लगेगी। अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाना होना, पूंजीवाद के खिलाफ़ खुलकर सामने आना होगा। तुम्हारी खामोशी ही तुम्हारी कमज़ोरी हैं। 

अभी मैंने ट्विटर पर एक वीडियो देखा, जिसमें एक भाजपा एमएलए का प्रतिनिधि शराब के  नशे में एक आदिवासी युवक पर जानबूझकर पेशाब कर रहा हैं। वो आदिवासी युवक चुपचाप बैठे इस अत्याचार को झेल रहा हैं। किसलिए...? 

चुपचाप रहने से कुछ नहीं होगा... हक़ के लिए लड़ना ही होगा। क्योंकि आज़ादी रक्त मांगती हैं।

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