पतझड़ सिर्फ़ गरीबों के हिस्से में आता हैं और बहारें अमीरों के हिस्से में

 “पतझड़ सिर्फ़ गरीबों के हिस्से में आता हैं और बहारें अमीरों के हिस्से में”


(फ़ोटो–प्रतीकात्मक)


हमारा देश ऋतुओं का देश है, यहां हर तीन महीने में ऋतु बदलती हैं। इन ऋतुओं के लिए गीतों के माध्यम से बखूबी प्रस्तुत किया गया हैं, पहले पतझड़ फिर सावन फिर बसंत और आखरी में बहार। चारों ऋतुएं बहुत ही खुबसूरत होती हैं। लोगबाग इनका लुफ्त उठाने के लिए बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। मगर इन ऋतुओं की एक शर्त है, ये पतझड़ गरीबों के हिस्सों में देती हैं और बहारें अमीरों के हिस्से में।

इन्हीं ऋतुओं के मेल से बनता हैं मौसम जिन्हें हम सर्दी बरसात और गर्मी के नाम से जानते हैं। ये मौसम भी बड़े नटखट होते हैं। अगर ये अपने स्तर से नीचे गिरते हैं या अपनी हदें तोड़ देते हैं दोनों ही स्थिति में गरीबों पर कयामत लेकर आते हैं। जहां एक तरफ़ तेज बारिश किसानों की फसलों को बर्बाद कर देती हैं वहीं दूसरी ओर अमीर लोग कहते हैं वाह क्या मौसम आया है। 

जब कभी गर्मी या सर्दी अपनी हदें लांघ देती हैं, गरीबों का जीना दुश्वार हो जाता हैं। मैंने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी जो गरीब की सहनशीलता और उसके लोभ पर रचित थी। एक वृद्ध सड़क किनारे फुटपाथ पर लेता हुआ था, कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। वो कांप रहा था। मगर उफ़ नही कर रहा था। उसमें इस भयंकर सर्दी को सहन करने की शक्ति थी। क्योंकि वो जानता था कि मेरे पास इस सर्दी से लड़ने के लिए कुछ भी नहीं हैं। शायद इसीलिए वो विवश था, इसी विवशता ने उसे सहन करना सीखा दिया था। एक शाम उसके उम्मीदों के रेगिस्तान में काले घने बादल छा गए। वो खुशी से झूम उठा, उसे लगा कि ये काले घने बादल मेरे जीवन के अंधकार को काट देंगे। उनमें रोशनी भर देंगे, मगर हुआ वहीं वो अक्सर होता हैं, हम लचारों की विवशता से खिलवाड़। उस शाम कुछ यूं हुआ कि वो वृद्ध सर्दी से ठिठुर रहा था, अंधेरा घना होता जा रहा था। तभी अचानक पास से ही एक सज्जन व्यक्ति गुजरे, उन्होंने वृद्ध की हालत देखी उनसे ना रहा गया, वो तुरंत उस वृद्ध के पास गए और पूछा आप इतनी कड़क ठंड में रात कैसे गुजार लेते हैं? वृद्ध ने कहा क्या करें साहब अब आदत सी पड़ गई हैं। तब उस सज्जन व्यक्ति ने कहा कि आप बिल्कुल भी फ्रिक ना करें मैं आपके लिए कुछ गर्म कपड़े लाकर देता हूं। वृद्ध खुश हो गया, उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। वो व्यक्ति अपने घर चला गया, ताकि समय से वृद्ध को गर्म कपड़े लाकर दे सकें। वृद्ध को उसकी दिलासा जमीं से सातवें आसमान पर ले गई। मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था। इधर गर्म कपड़ों की बात सुनकर वृद्ध के मन में लालच का भाव पैदा हो गया। जो इस कड़ाके की ठंड पड़ गुजर बसर कर रहा था वो अब उसे मुश्किल प्रतीत होने लगा। इधर दूसरी ओर वो सज्जन व्यक्ति गर्म कपड़े लाना भूल गया। जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था, वैसे वैसे वृद्ध की सहन शक्ति कमज़ोर पड़ती जा रही हैं। जिसे अब तक यह सर्दी तनिक भी विचलित नहीं कर पा रही थी अब वही सर्दी लालच का भाव खाते ही जीना दुश्वार कर रही थी। 

रात बीत गई, सुबह हुई, अब उस सज्जन व्यक्ति को ख्याल आया कि वो शाम के वक्त किसी से वादा करके आया था कि उसे वो गर्म कपड़े लाकर देगा, मगर घर पहुंचते ही भूल गया। अब सुबह वो जल्दी तैयार हुआ और कुछ पुराने गर्म कपड़े और खाना पैक किया, अपनी गाड़ी की डिग्गी में डाले और उस वृद्ध के पास चल दिया, रास्ते में सोच रहा था कि वो वृद्ध आदमी कितना खुश होगा, जब मैं उसे यह गर्म हो और खाना दूंगा। यह व्यक्ति बहुत खुश था, मगर जैसे ही वह गतव्यंग स्थान पर पहुंचा, तो देखा कि वहां भीड़ लगी हुई हैं। इसे कुछ समझ नहीं आया ये व्यक्ति गाड़ी से उतर कर वृद्ध के पास गया, तो देखा कि वहां एक हाड़ मांस या पुतला पड़ा हैं, जिसका शरीर ठंड से अकड़ गया हैं। जो हमेशा के लिए चिरनिद्रा में लीन हो गया। लोग आपस में बातें कर रहे थे कि ये वृद्ध इतनी आसानी से कैसे मर गया ये कल तक तो एकदम चंगा था, शाम के वक्त खूब हंस हंस कर बाते कर रहा था। मगर अचानक क्या हो गया। तभी अचानक उस सज्जन व्यक्ति की नज़र वृद्ध के हाथ पर पड़ती हैं जिसमें उसने ज़ोर की मुट्ठी बंद कर रखी थी। जब वो मुट्ठी खोली तो पाया कि उसमें एक कागज़ का टुकड़ा था, उसमें लिखा था,“यदि किसी की मदद ना कर सकों तो उसे दिलासा मत दो क्योंकि दिलासा कमज़ोर कर देती हैं”। वो व्यक्ति वहीं फूट फूट कर रोने लगा। तब जाकर उसे अहसास हुआ कि उसने कितनी बड़ी गलती कर दी। 

दरअसल जिन चीज़ों को पाना हमारे लिए मुश्किल होता हैं हम उनके ख्बाव कम देखते हैं। उस चीज़ के बगैर जीने की आदत होती हैं हमारी, मगर जब कोई हमें उन चीजों का अहसास दिलाता हैं तो हम उसके आदि होने लगते हैं। उसकी कमी से हम अपना वर्तमान और भविष्य बिगाड़ लेते हैं। यदि हमें कुछ हासिल भी हो जाए, जिसे पाने के लिए हमने जरा भी मेहनत ना की हो, तब उस स्थिति में हम उस वस्तु की असली कीमत नहीं समझ पाते हैं। अर्थात प्रकृति के विपरीत जाना खतरनाक साबित होता हैं। हालांकि कुछ शर्तों पर लाभदायक भी साबित होता हैं। मगर आज कल अमीरों ने अपने अनुसार वातावरण का रुख बदलना शुरू कर दिया है। उन्हें हर समय अपने शरीर के अनुकूल मौसम की चाहत होती हैं जिसके लिए वो मौसम और वातावरण से छेड़छाड़ करते हैं। तभी तो मैंने कहा था कि पतझड़ सिर्फ़ गरीबों के हिस्से में आता हैं और बहारें अमीरों के हिस्से में।


– Vinay Kumar Jha (फ़ोटो–प्रतीकात्मक)

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