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Photo - Hindustan |
इसी तापमान के चलते ये पक्षी दुनियां के उन तमाम देशों की ओर अपना रुख करते हैं जहां का तापमान इनके जीवन के अनुकूल हो। हमारे देश में यह पक्षी लगभग चार महीने गंगा नदी के आसपास के इलाकों में ठहरते हैं। इन पक्षियों के लिए यह वातावरण उचित होता हैं।
जब ये पक्षी अपने देश से अन्य देशों के लिए प्रवास करते हैं तब इनके झुंड की संख्या लाखों में होती हैं। इस पक्षियों के बारे में अधिक जानकारी आप इंटरनेट पर ख़ोज सकते हैं। हम अभी इन पक्षियों के भारतीय जीवन भर नज़र डालेंगे। ये प्रवासी पक्षी यहां क्या करते हैं और इनके साथ यहां क्या होता हैं।
ये बेजुबान पक्षी भारत आने के बाद गंगा नदी के किनारे अपना डेरा डालते हैं, नदी की धारा में अठखेलियां करते हैं, लोगों को खूब आकर्षित करते हैं। इनकी मनमोहक क्रियाएं बाकई देखने में अद्भुत प्रतीत होती हैं। जो इन्हें इन्हें एक बार देखता हैं, ये उनका मन मोह लेते हैं।
मगर इन बेजुबानों को कुछ लालची और हवसी लोगों की नज़र लग गई हैं। प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में इनका शिकार हो रहा हैं और ऊंचे दामों में इन्हें बेचा जा रहा हैं। बहुत ही क्रूरता से शिकारी इन्हें पकड़ते हैं फिर तस्करों को सौंप देते हैं।
मैं यहां एक अख़बार की ख़बर के हवाले से बता रहा हूं कि इनका शिकार कैसे होता हैं और कैसे इन्हें बाजारों तक पहुंचाया जाता हैं।
सबसे पहले गंगा के उथले पानी में नीचे जाल बिछा दिया जाता है। इसके बाद स्प्रिंगनुमा जाल में दो-तीन जिंदा साइबेरियन पक्षियों की चोंच व आंखें धागे से सिलकर उनको उसी जाल में बांध दिया जाता है। ताकि दूर से देखने में लगे कि साइबेरियन पक्षी पानी में तैर रहे हैं।
इसके बाद जाल से बंधी हुई लगभग दो सौ मीटर लंबी रस्सी हाथ में लेकर शिकारी रेत में छिप जाते हैं। इसी बीच गंगा के ऊपर उड़ता हुआ साइबेरियन पक्षियों का झुंड जब नीचे पानी में तैरते साथियों को देखते हैं तो वो भी जाल के ऊपर आकर बैठ जाते हैं।
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Photo - Social Media |
जैसे ही पक्षी नीचे जाल बिछे वाले स्थान पर उतरते हैं, वैसे ही शिकारी रस्सी खींच लेते हैं। रस्सी खींचते ही जाल पूरा बंद हो जाता है और पक्षी उसमें फंस जाते हैं। जाल में फंसे पक्षियों को बाहर निकालकर उनके पंख तोड़ देते हैं ताकि वो उड़ न पाए।
इसके बाद इनकी आंखें व चोंच भी धागे से सिल देते हैं और कानों में रुई लगा देते हैं ताकि पकड़ा गया पक्षी कोई हलचल न करने पाए। सभी को एक साथ बांधकर जिंदा ही बोरियों में भर लिया जाता है और जब खरीदार आते हैं तब उन्हें बेच दिया जाता हैं।
ये शिकार बड़े ही गुप्त व्यवस्था से होता हैं। इसके लिए शिकारी कोई सुनसान जगह चुनते हैं ताकि उन पर किसी को शक ना हो। इन पक्षियों को कारों में भरकर शहर पहुंचाया जाता हैं।
ये बेजुबान पक्षी हजारों मील की यात्रा करते हैं जिनमें कई समुंदर, रेगिस्तान, बर्फीले पहाड़ जैसे इलाकों से कठिन परिस्थिति में हमारे देश पहुंचते हैं। इन्हें रास्ते में, धूप, वर्षा, तूफ़ान, अंधेरा जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैं। फिर भी हमारे देश आते हैं ताकि यहां खुशी से चार महीने बिता सकें।
हमारा देश महान हैं ये हम कहते हैं, अतिथि देवो भवः जैसा मूल मंत्र हमारी संस्कृति और परंपरा का हिस्सा रहा हैं जिसका हम सदियों से अनुसरण कर रहे हैं। फिर इन बेजुबानों के इतनी नाइंसाफी और क्रूरता क्यों?
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