मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण क्यों? आख़िर क्यों? समझिए इस छोटे से लेख में!!

 मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण क्यों?


हमनें इस सवाल का जबाव पाने के लिए काफ़ी रिसर्च और एनालिसिस किया।


 हमें जबाव मिला, सरकार मंदिरों के उच्च रखरखाव, प्रबंधन और विकास के लिए अपने नियंत्रण में किए हुए हैं। सरकार ने दलील दी है कि यदि मंदिर पर सरकारी नियंत्रण रहेगा तो सामाजिक न्याय को मजबूती प्रदान की जा सकेगी। जैसे प्रबंधन समिति में सभी वर्ग और जाति के लोगों को शामिल किया जाना, ताकि ऊंच-नीच की भावना को समाप्त किया जा सकें।

फ़ोटो सोशल मीडिया 


मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 9 लाख मंदिर हैं, जिनमें से 4 चार लाख मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण हैं। ये नियंत्रण आज से नहीं बल्कि अंग्रेज़ों के ज़माने से हैं।


मंदिर सरकारों की आय का जरिया रहा इसलिए इस क्षेत्र में कोई ख़ास कदम नहीं उठाया गया। जब भी मंदिरों से नियंत्रण हटाने की बात आती हैं सरकारें मौन धारण कर लेती हैं।


आइए एक उदाहरण से समझते हैं।


अभी केंद्र में भाजपा की सरकार हैं और देश के अधिकांश राज्यों में भी भाजपा की सरकार हैं। अभी बीतें दिनों भाजपा ने कर्नाटक और तमिलनाडु में वादा किया था कि यहां हमारी सरकार बनाओ हम मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर देंगे। 


लेकिन उत्तराखंड में तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार ने चारधाम एक्ट लाकर और मनोहर लाल खट्टर की हरियाणा सरकार ने चंडीदेवी समेत कई प्रमुख मंदिरों को अपने नियंत्रण लेने का फैसला किया था। 


यही दोहरी नीति कांग्रेस ने भी अपनाई थी। नियंत्रित मंदिरों से लगभग 1 लाख करोड़ की आय होती हैं। जिससे सरकारी खजाने के साथ साथ नेता मंत्रियों के ख़ज़ाने भी भरते हैं।

इसलिए इतनी आसानी से मंदिर मुक्त नहीं होंगे।

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