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Lucknow : दिल्ली के अशोक होटल में इंडिया गठबंधन की चौथी मीटिंग संपन्न हुईं। जिसमें कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों के नेता शामिल हुए।
इस बार भी बसपा सुप्रीमो मायावती ने गठबंधन से दूरियां बरक़रार रखीं। इसी बीच सपा नेता रामगोपाल यादव का बयान भी चर्चा का विषय बना हुआ हैं, उन्होंने कहा "अगर बसपा को इंडिया गठबंधन में शामिल किया गया तो हम (सपा) गठबंधन छोड़ देगी।"
उधर मायावती ने भी स्पष्ट कर दिया हैं कि बसपा किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करेगी।
इस बयान के पीछे क्या वजह हो सकती हैं इसके लिए हमें यूपी की राजनीति में 30 साल पीछे जाना होगा, तभी हम इस बयान की तह तक पहुंच सकते हैं।
यूपी की राजनीति में मायावती का काफ़ी वर्चस्व रहा हैं, मगर अब सिमटतीं नज़र आ रही हैं। 2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने अपने दम पर सरकार बनाई थी। मगर उसके बाद से उनके वोट बैंक में लगातार गिरावट आई।
2007 में बाइस वर्षों बाद किसी दल ने यूपी में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई थीं। तब मुलायम सिंह यादव ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाते हुए कहा था "ये लोकतंत्र के लिए बहुत अशुभ है. चुनाव आयोग ने मनमानी की है और अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर सरकार चलाई है. सभी दलों को इस पर विचार करना चाहिए।"
बसपा 1993 के विधानसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन कर चुकी हैं, तब मुलायम सिंह यादव की अगुआई में सरकार बनी थीं। तब सपा को 109 और बसपा को 67 सीटें मिली थीं।
इसके बाद मायावती ने सपा से गठबंधन तोड़कर बीजेपी के साथ मिलकर तीन बार सरकार बनाईं थी। मायावती ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर चार बार कार्यभार संभाला है। 1995, 1997 और 2002 में बसपा और भाजपा ने संयुक्त सरकार बनाई थी। 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा पूर्ण बहुमत 206 सीटों के साथ लौटी थी।
मायावती का कार्यकाल पूरा होने के बाद समाजवादी पार्टी 2012 में 224 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत की सरकार बनाती हैं। तब बसपा के खाते में मात्र 80 सीटें आती हैं।
अब सपा और बसपा एक दूसरे की धुर विरोधी पार्टी बन गई थी। 2014 में लोकसभा चुनाव होते हैं, इन चुनावों में बसपा अपना खाता भी नहीं खोल पाती हैं जबकि सपा के खाते में 5 सीट आती हैं।
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा और बसपा स्वतंत्र चुनाव लड़ते हैं, तब भारतीय जनता पार्टी को 312 सीटें, सपा को 47, बसपा को 19, और औरों को कुल मिलाकर 54 सीटें मिलती हैं। पहली बार भाजपा उत्तर में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाती हैं, सपा और बसपा को अपने ही गढ़ में कमज़ोर कर देती हैं।
अब बीजेपी की सरकार केंद्र और राज्य में स्थापित हो चुकी थी, केंद्र से बीजेपी की सरकार को उखाड़ फेंकने को मंशा से एक बार फिर सपा और बसपा गठबंधन करते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा को सिर्फ़ 5 सीटों पर ही जीत हासिल होती हैं, जबकि बसपा 10 सीटों पर जीत दर्ज करती हैं।
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अब यहां से फिर शुरू होता हैं बसपा और सपा के बीच आरोप और प्रत्यारोप का दौर, सपा का कहना है उसने बसपा से गठबंधन करके भारी नुकसान उठाया है। बसपा भी पलटवार करते हुए कहती हैं कि उसने भी सपा से गठबंधन करके नुकसान झेला हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद मायावती ने 24 जून को एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा था, "बसपा ने प्रदेश में सपा सरकार के दौरान हुए दलित विरोधी फ़ैसलों को दरकिनार कर देशहित में पूरी तरह गठबंधन धर्म निभाया. चुनावों के बाद सपा का व्यवहार सोचने के लिए मजबूर करता है कि क्या ऐसा करके बीजेपी को आगे हरा पाना संभव होगा? जो संभव नहीं है. अतः पार्टी के हित में बसपा आगे होने वाले सभी छोड़े-बड़े चुनाव अकेले अपने बूते पर ही लड़ेगी।"
एक बार फिर सपा और बसपा के बीच दूरियां पैदा होना शुरू हो जाती हैं, और अंततः गठबंधन फिर टूट जाता हैं।
आंकड़ों की बात करें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी से बीजेपी के लिए कुल मतदान का 49.6 प्रतिशत, बसपा के लिए 19.3 प्रतिशत और सपा के लिए 17.96 प्रतिशत वोट मिलता हैं।
यूपी में अठारहवीं विधानसभा चुनाव 2022 में होते हैं, सपा, बसपा और बीजेपी एक बार फिर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ते हैं। NDA समर्पित बीजेपी को 273 सीट, सपा को 125 सीट और बसपा को मात्र 1 सीट मिलती हैं। इस चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश हर पंचवर्षीय योजना में सत्ता को बदल देने का रिवाज़ था, मगर इस चुनाव में यह रिवाज़ भी टूट गया।
1985 में कांग्रेस ने दोबारा बापसी करते हुए पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी, इसके बाद 37 वर्षों तक किसी भी दल की पूर्ण बहुमत से वापसी नहीं हुई। मगर इस बार बीजेपी ने इस भ्रम को भी तोड़ दिया।
अब वर्तमान बापिस आते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव नज़दीक आ गए हैं। इंडिया गठबंधन, भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंकने का पूरा प्रयत्न कर रहा हैं। लेकिन जब यूपी की 80 लोकसभा सीटों की बात आती हैं तो उन पर मायावती के बगैर चर्चा करना बेकार हैं। भले ही पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा को 1 सीट मिली हो मगर यूपी के दलित वोट पर मायावती की अच्छी खासी पकड़ मानी जाती हैं।
बसपा, कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से पहले कई बार सोचेगी। क्योंकि जिन वोट पर मायावती की पकड़ मजबूत है कहीं कांग्रेस उन्हें अपने पाले में न कर लें। इस तरह मायावती का रुख साफ़ हैं कि वो गठबंधन में फिलहाल नहीं आने वाली। उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस करते हुए कहा था "बीएसपी ने सत्ताधारी और विरोधी गठबंधन से हमेशा दूरी ही बनाकर रखी हैं"।
उन्होंने कहा "बीएसपी को भी सत्ता में आसीन होने का मौका मिल सकता हैं।"
मायावती ने यह बयान हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले दिया था। उन्होंने कहा था कि बीएसपी अकेले अपने दम पर होने वाले विधानसभा चुनाव लड़ेगी। हालांकि बसपा इन चुनावों में ख़ास प्रदर्शन नहीं कर पाई।
मायावती ने एक्स पर पोस्ट करते हुए 30 अगस्त 2023 को लिखा था "एनडीए व इण्डिया गठबंधन अधिकतर गरीब-विरोधी जातिवादी, साम्प्रदायिक, धन्नासेठ-समर्थक व पूंजीवादी नीतियों वाली पार्टियाँ हैं जिनकी नीतियों के विरुद्ध बीएसपी अनवरत संघर्षरत है और इसीलिए इनसे गठबंधन करके चुनाव लड़ने का सवाल ही पैदा नहीं होता।"
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इस तरह मायावती की तरफ़ से साफ़ साफ़ कर दिया गया हैं कि बसपा किसी गठबंधन में शामिल नहीं होगी।
अब बात करते हैं सपा नेता शिवपाल यादव के उस बयान की जब उनसे पूछा गया कि क्या मायावती को गठबंधन में शामिल करेंगे? तब उन्होंने कहा "वो पहले बीजेपी से दूरियां बनाएं, तब हम इस पर विचार करेंगे।"
जबकि रामगोपाल यादव का कहना है कि यदि मायावती, गठबंधन में शामिल होती हैं तो हम गठबंधन से दूरियां बना लेंगे।
राजनीति के हिसाब से इन दोनों बयानों को आंके तो ये दोनों बयान निराधार और बेतुका हैं। क्योंकि सपा भी यह बात अच्छी तरह से जानती है 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ़ 5 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकीं। 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा, कांग्रेस के साथ गठबंधन करके कुछ ख़ास प्रदर्शन नहीं कर पाई थी।
इसलिए कांग्रेस का भी रुख साफ़ हैं कि बिना मायावती को अपने साथ लिए उत्तर प्रदेश में कुछ ख़ास नहीं कर पाएगी। यदि यूपी की राजनीति में भाजपा को टक्कर देना है तो सपा, बसपा और कांग्रेस को एक साथ ही आना होगा।
यदि बसपा, एनडीए और इंडिया गठबंधन से दूरियां बनाती हैं तो इनका अप्रत्यक्ष रुप से बीजेपी को फायदा मिलेगा। भले ही 2007 और 2012 में क्रमशः बसपा और सपा ने अपने दम पर सरकार बनाई हो, मगर 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में करारी हार भी झेलनी पड़ी हैं।
सपा और बसपा को अलग करके पूरा फायदा बीजेपी ने उठाया, मायावती का एक तिहाई दलित कोर वोटर बीजेपी के पाले में चला गया।
अगर यूपी में तीनों पार्टियों के बीच गठबंधन हो भी गया तो सीट बंटवारे को अड़चनें आना स्वाभाविक सी बात हैं। सूत्रों की माने तो बीएसपी 40 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारना चाहेगी। जो अखिलेश यादव को कतई मंजूर नहीं होगा। क्योंकि सपा लगभग 65 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारना चाहेगी। वहीं सपा की माने तो यूपी में कांग्रेस के लिए मात्र 10 सीटें ही दे सकते हैं।
अंततः निष्कर्ष यह निकलता है कि उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन बिना बीएसपी के कुछ प्रदर्शन नहीं कर पाएगी। इससे पहले सपा और कांग्रेस 2017 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन करके देख चुके हैं।
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