Media Sanathanon me aaj kya haal hai, is lekh se samjhiye

 (छात्र मीडिया संस्थान में इंटरव्यू देने आया है, HR छात्र का रिज्यूम देखते हुए)


सॉरी, आपको काम नहीं मिल सकता।

सर मगर क्यों?

जब कह दिया ना, आपको काम नहीं मिल सकता, तो नहीं मिल सकता। आप समझते क्यों नहीं? 

हां, मैं समझता हूं! मगर काम क्यों नहीं मिल सकता! उसकी कोई वजह तो होगी?

तुम्हारा यहां (मीडिया में) कोई पहचान (रिलेटिव) का हैं?

नहीं सर!

तुमने हमारे संस्थान से ये डिग्री की है?

नहीं सर!

पत्रकारिता में एक साल से ऊपर का अनुभव है?

नहीं सर! 

जब यहां तुम्हारा कोई पहचान वाला नहीं, तुमने हमारे यहां से डिग्री नही की है, और ना ही तुम्हें एक साल से ऊपर का अनुभव है। फिर तुम्हीं बताओ हम तुम्हें काम पर कैसे रख लें? 

डिग्री के साथ साथ ये क्राइटेरिया भी जरूरी हैं?

हां, बेहद जरूरी! 


तो देखा आपने मीडिया संस्थानों में ये चल रहा हैं। मैंने एक चैनल में इंटर्नशिप के लिए बात की, उन्होंने कहा जो बच्चे हमारे संस्थान से डिग्री करते हैं हम सिर्फ़ उन्हीं बच्चों को इंटर्नशिप और जॉब देते। 

मैंने एक जगह और इंटर्नशिप के लिए ट्राई किया था, वहां किसी पहचान वाले का होना बेहद ख़ास था। इसके अलावा आप समाचार पत्रों और चैनलों के विज्ञापन तो देखते ही होंगे, जिनमें हमेशा एक साल से ऊपर अनुभव मांगा जाता हैं। 

अब इंटर्नशिप की बात कर लेते हैं, मेरे एक मित्र ने एक चैनल में छः माह इंटर्नशिप की, वो भी मुफ़्त में! उसे क्या मिला? कुछ भी नहीं! समय पूरा हुआ तो निकाल दिया। 

मेरा एक और मित्र जो 8 महीने पैड इंटर्नशिप करता हैं। इसे ख़त्म करने के बाद जब वो दूसरे संस्थान में नौकरी मांगने जाता हैं तब उससे कहा जाता हैं, कि आपको यहां भी इंटर्नशिप ही करनी होगी, वो भी मुफ़्त।

वकालत करने के लिए तो फिक्स है कि वकील की डिग्री चाहिए। मगर पत्रकारिता के लिए दसवीं फेल भी अप्लाई कर सकता हैं। अच्छी बात हैं, करो। 

मगर इससे क्या होता हैं? रिपोर्टर की जगह स्ट्रिंगर ले लेते हैं। जो एक साथ कई चैनल के लिए काम करते हैं। जबकि एक ऑथराइज्ड रिपोर्टर ऐसा नहीं कर सकता। इससे मीडिया संस्थाओं को काफी फ़ायदा होने लगा।

दूसरी बात देशभर में प्रतिवर्ष लगभग हज़ार छात्र पत्रकारिता की डिग्री हासिल करते हैं। फिर अपने लिए इंटर्नशिप की तलास करते हैं। 

ध्यान देने योग्य बात देश में बेरोजगारी कितनी हैं, ये बात किसी से छिपी नहीं हैं। इसी बात का फ़ायदा मीडिया संस्थान उठाते हैं। उन्हें मुफ़्त के मजदूर आराम से थोक के भाव मिल जाते हैं। जब तक मर्ज़ी होती हैं काम कराते हैं फिर इन्हें निकाल कर अन्य छात्रों को हायर कर लिया जाता हैं। ये क्रम ऐसे ही चलता रहता हैं। 

मीडिया जोकि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, वह चाहे तो सत्ता में बैठी सरकार को गिरा सकते हैं और हारी हुई पार्टी की सरकार बना सकते हैं। यह मीडिया संस्थान जमाने भर की समस्याओं से वाकिफ है इन्हें जो खबर उपर्युक्त लगती है यह वही चलाते हैं। बाकी खबरों को जानबूझकर अनदेखा कर देते हैं। 

मीडिया एक ऐसा दीपक है जो अंधकारमय समाज को रोशनी से भर सकता है। हमेशा से समाचार पत्र और मीडिया ही समाज का आईना बने हुए हैं जो उन्हें सच्चाई से रूबरू करवाते हैं, मगर क्या हो जब समाचार पत्र और मीडिया ही समाज का दमन करने लगे?

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